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________________ प्राक्कथन जैन न्याय शास्त्र के प्रकाण्ड विद्वान् आचार्य माणिक्यनन्दि का एकमात्र ग्रन्थ परीक्षामुख' ही मिलता है। परीक्षामुख ग्रन्थ सूत्र शैली में लिखा गया है। यह जैन न्याय का प्रथम सूत्र ग्रन्थ है। इसमें प्रमाण और प्रमाणाभासों का विस्तृत विवेचन किया गया है। जिस प्रकार दर्पण में हमें अपना प्रतिबिम्ब स्पष्ट दिखाई पड़ता है, उसी प्रकार परीक्षामुख रूपी दर्पण में प्रमाण और प्रमाणाभासों का स्पष्ट ज्ञान होता है। इस ग्रन्थ में प्रमाण के स्वरूप, संख्या तथा प्रमाणाभास की परीक्षा की गयी है। प्रमाण और प्रमाणाभास को जानने की आवश्यकता का प्रतिपादन करते हुए ग्रन्थकार कहते हैं - प्रमाणादर्थसंसिद्धिस्तदाभासाद्विपर्ययः । इति वक्ष्ये तयोर्लक्ष्म सिद्धमल्पं लघीयसः॥ प्रमाण के द्वारा सम्पूर्ण ज्ञेय पदार्थों की समीचीन परीक्षा की जाती है। और प्रमाणाभास से विपरीत निर्णय होता है। अतः न्यायशास्त्र में अव्युत्पन्नजनों को प्रमाण और प्रमाणाभास का ज्ञान कराने के लिए उनके स्वरूप का विवेचन किया जाता है। इस ग्रन्थ में 208 सूत्र और छह समुद्देश हैं। प्रथम समुद्देश में 13 सूत्रों के द्वारा प्रमाण के स्वरूप का विस्तृत विवेचन किया गया है। आचार्य श्री ने 'स्वापूर्वार्थव्यवसायात्मकं ज्ञानं प्रमाणम्' सूत्र के द्वारा प्रमाण का स्वरूप बताते हुए कहा है कि वह निश्चयात्मक ज्ञान जो स्वयं को भी जानता है और पहले किसी प्रमाण से नहीं जाने हुए पदार्थों को भी जानता है, प्रमाण है। अग्रिम सूत्रों में प्रत्येक विशेषण की सार्थकता सिद्ध करते हुए नैयायिकों के द्वारा मान्य सन्निकर्ष बौद्धों के द्वारा मान्य निर्विकल्पक प्रत्यक्ष, ग्रहीतग्राही धारावाही ज्ञान तथा अस्वसंवेदी ज्ञान की प्रमाणता का निराकरण करते हुए हितग्राही और अहित के परिहार में समर्थ दीपक के समान स्वपरावभासी ज्ञान को ही प्रमाण सिद्ध किया है तथा प्रमाण की प्रमाणता की सिद्धि कथंचित् स्वतः और कथंचित् परतः बतायी है। द्वितीय समुद्देश में 12 सूत्र हैं। इस समुद्देश में 'तवेधा' तथा 'प्रत्यक्षेतरभेदात्' सूत्र के द्वारा प्रमाण के प्रत्यक्ष और परोक्ष दो भेद बताकर चार्वाक, बौद्ध, सांख्य, नैयायिक, प्रभाकर तथा मीमांसकों द्वारा मान्य एक, दो, 12
SR No.007147
Book TitleParikshamukham
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManikyanandi Aacharya, Vivekanandsagar, Sandip
PublisherAnekant Gyanmandir Shodh Samsthan
Publication Year2011
Total Pages22
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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