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________________ ७६ अलिंगग्रहण प्रवचन ३. आत्मा एक अभेदवस्तु है, उसमें ज्ञानगुण है और यह ज्ञानगुण का धारक गुणी है, इसप्रकार भेद उत्पन्न करके उसमें अटकना, वह भी मिथ्यादृष्टि है। ____ अतः इस बोल में कहते हैं कि अभेद आत्मा ज्ञानगुण को स्पर्श नहीं करता है, आलिंगन नहीं करता है, वह एकरूप शुद्ध असंगी तत्त्व है। आत्मा शरीरमन-वाणीरहित, कर्मरहित; शुभाशुभ परिणाम जितना नहीं है, उसीप्रकार गुणभेद में रुके, वैसा भी नहीं है; परन्तु शुद्ध, अभेद, एकाकार, परिपूर्ण आत्मा है, उसे दृष्टि में लेना-श्रद्धा में लेना, वह सम्यग्दर्शन है। पर के अभावस्वभाववाला आत्मा १. शरीर, मन, वाणी, कर्म, जड़ वस्तुएँ तथा अन्य आत्मायें उन सर्व का इस आत्मा में अभाव है अर्थात् वह उनके अभाव स्वभाववाला है। २. पुण्य-पाप के भाव त्रिकाली स्वभाव में नहीं हैं । अंतः आत्मा उनके अभाव स्वभाववाला है। आत्मा को विकारवाला मानने से सच्ची श्रद्धा नहीं होती है। ३. सामान्य में विशेष का अभाव है। निश्चय से सामान्य पदार्थ विशेष को स्पर्श करे तो सामान्य और विशेष एक हो जायें। सामान्य, विशेष के भेद रहित अभेद एकाकार आत्मा वह शुद्धद्रव्य है। इस बोल में लिंग का अर्थ गुण किया है; परन्तु गुण तो बहुत हैं, अत: ग्रहण शब्द का अर्थ ज्ञान किया है। अभेद आत्मा ज्ञानगुण को स्पर्श नहीं करता है। ___ अनादि से अज्ञानी जीव मानता है कि एक शरीर अन्य शरीर को रोकता है, स्पर्श करता है; एक आत्मा शरीर को स्पर्श करता है, कर्म को स्पर्श करता है और अन्य आत्मा को स्पर्श करता है; त्रिकाली स्वभाव विकार को स्पर्श करता है और गुणभेद को स्पर्श करता है; परन्तु यह सब मान्यता भूल से भरी (भ्रमपूर्ण) है। एक का दूसरे में अभाव होने से एक दूसरे को परमार्थ से स्पर्श नहीं करता है। __इसप्रकार आत्मा गुणविशेष से नहीं आलिंगित ऐसा शुद्धद्रव्य है। वस्तु अभेद है; उसमें गुण-गुणी का भेद नहीं पड़ता है। सम्यग्दर्शन का विषय सम्पूर्ण आत्मा है - ऐसे अर्थ की प्राप्ति होती है।
SR No.007143
Book TitleAling Grahan Pravachan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorYashpal Jain
PublisherTodarmal Granthamala Jaipur
Publication Year2001
Total Pages94
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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