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________________ उन्नीसवाँ बोल ७१ प्रश्न : द्रव्य, पर्याय को स्पर्श नहीं करता है, इसप्रकार कहते हो तो क्या द्रव्य, पर्याय बिना का होगा? उत्तर : द्रव्यसामान्य, निश्चय से तो पर्याय बिना का है। द्रव्यसामान्य और पर्यायविशेष - दोनों मिलकर सम्पूर्ण द्रव्य होता है, ऐसा द्रव्य का अर्थ यहाँ नहीं लेना। यहाँ शुद्धद्रव्य का अर्थ सामान्य, सदृश, एकरूप, त्रिकाली स्वभाव लेना।द्रव्य सामान्य है, पर्याय विशेष है। सामान्य में विशेष का अभाव है। अभाव कहते ही 'त्रिकाली स्वभाव एकसमय की पर्याय को स्पर्श नहीं करता है' ऐसा निर्णय होता है। ___ शुद्धस्वभावी द्रव्य वह नित्य है और निर्मल पर्याय वह एकसमय की होने से अनित्य है। नित्य ऐसा शुद्धद्रव्य अनित्य ऐसे सम्यग्ज्ञान की अथवा केवलज्ञान की पर्याय को निश्चय से स्पर्श करे तो द्रव्य नित्य नहीं रहता है अर्थात् द्रव्य के क्षणिक होने का प्रसंग आता है; परन्तु ऐसा कभी नहीं बनता है। अनित्यपर्याय का लक्ष छोड़ और नित्यद्रव्य का लक्ष कर। . जिसप्रकार १८वें बोल में कहा था कि अभेद आत्मा में भेद का अभाव है; अतः अभेद आत्मा गुणभेद को स्पर्श नहीं करता है, उसीप्रकार यहाँ नित्य ज्ञानानंद शुद्धस्वभावी आत्मा त्रिकाली है; वह एकसमय की अनित्य निर्मलपर्याय का स्पर्श नहीं करता है – इसप्रकार कहकर जो निर्मल पर्याय अनित्य है, उस पर से लक्ष छुड़ाकर जो नित्यद्रव्य शुद्ध, एकरूप, अभेद पड़ा है, उस पर दृष्टि कराने का प्रयोजन है। तेरा आत्मा निर्मल पर्याय जितना नहीं है, तू तो त्रिकाली शुद्ध है। उस पर लक्ष करेगा तो सम्यग्दर्शन होगा और नित्य के लक्ष से ही निर्मलता बढ़कर परिपूर्ण निर्मलता होगी, इसप्रकार कहने का आशय (भाव) है। इस उन्नीसवें बोल में अलिंगग्रहण का अर्थ इसप्रकार है -अ-नहीं, लिंग-पर्याय, ग्रहण-ज्ञान की निर्मल पर्याय-वह जिसकी नहीं है अर्थात् शुद्धद्रव्य, ज्ञान की एक समय की निर्मलपर्याय जितना ही नहीं है; परन्तु नित्य, सदृश, सामान्य, एकरूप है; इसप्रकार तू स्वज्ञेय को जान। इसप्रकार स्वज्ञेय की श्रद्धा, ज्ञान करना धर्म का कारण है।
SR No.007143
Book TitleAling Grahan Pravachan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorYashpal Jain
PublisherTodarmal Granthamala Jaipur
Publication Year2001
Total Pages94
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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