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________________ ४६ अलिंगग्रहण प्रवचन उपयोग पर्याय है। 'है' उसे कौन हरण कर सकता है? इस जगत में द्रव्य-गुण-पर्याय तीनों वस्तु हैं । जिसप्रकार द्रव्य ज्ञेय है, गुण ज्ञेय है; उसीप्रकार पर्याय भी ज्ञेय है। उपयोग ज्ञानगुण की पर्याय है तथा वह ज्ञेय भी है । यह ज्ञेय अधिकार है । यहाँ पर्याय-ज्ञेय कैसी होती है, उसका कथन करते हैं । सातवें बोल में कहा था कि ज्ञान पर्याय को पर का अवलंबन नहीं है। ज्ञेयपदार्थ - जो उपयोग 'है, है, है', उसे पर का अवलंबन क्यों हो? तथा ज्ञेयपदार्थ - जो उपयोग 'है, है, है' उसे बाहर से कैसे लाया जाय? तथा ज्ञेयपदार्थ – जो 'है, है, है', उसे कोई दूसरा कैसे हरण कर सकता है? अर्थात् जो उपयोग 'है' उसे पर का अवलंबन नहीं हो सकता है, इस प्रकार सातवें बोल में कहा है; उसे बाहर से लाया नहीं जाता है, ऐसा आठवें बोल में कहा है, उसे कोई हरण नहीं कर सकता है, ऐसा नवमें बोल में कहा है। जिसप्रकार द्रव्य है, गुण है, उसीप्रकार पर्याय भी "है", अतः ज्ञानउपयोगरूप पर्याय "है", उसे कौन हरण करके ले जाय? कोई हरण करके ले जाय ऐसा कहो, तो "है.''पना नहीं रहता है, "है'' पने की श्रद्धा नहीं रहती है। अतः पर्याय "है'', इसप्रकार स्वीकार करनेवाले को कोई हरण करके ले जाय, ऐसी शंका ही नहीं होती है। पंचमकाल अथवा प्रतिकूलता ज्ञान उपयोग का हरण नहीं कर सकते हैं। उस ज्ञेयपर्याय का स्वभाव ऐसा है कि वह निमित्त अथवा बाहर से नहीं लाई जाती है, वह स्व का आश्रय नहीं छोड़ती है और कोई हरण करके ले जाय ऐसा भी नहीं है । ज्ञान का कार्य क्या? ज्ञेयों का अवलंबन लेना ज्ञान का कार्य नहीं है, बाहर से वृद्धि को प्राप्त होना ज्ञान का कार्य नहीं है और किसी के द्वारा हीन हो जाय, ऐसा भी वह ज्ञान नहीं है । उस ज्ञेय का ऐसा स्वभाव है। ___ जगत में जीव कहते हैं कि भाई ! इस पंचमकाल में जन्म हुआ और काल के कारण उपयोग हीन हो गया; परन्तु यह बात मिथ्या है। उपयोग हीन हो जाय, उपयोग का वैसा स्वरूप ही नहीं है। संसार में लक्ष्मी जाने पर तथा प्रतिकूलता आने पर अज्ञानी जीव मानते हैं कि हमारी प्रतिष्ठा नष्ट हो गई।
SR No.007143
Book TitleAling Grahan Pravachan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorYashpal Jain
PublisherTodarmal Granthamala Jaipur
Publication Year2001
Total Pages94
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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