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________________ अलिंगग्रहण प्रवचन अज्ञानी कहता है कि सब आत्माओं के द्रव्य-गुण तो अनादि-अनंत शुद्ध परिपूर्ण भरे हैं और पर्याय में प्रगटता की वृद्धि दिखाई देती है, वह निमित्त आता है तब बढ़ती है और निमित्त नहीं आता है तो नहीं बढ़ती है। ज्ञानी पुरुष कहते हैं कि ऐसा नहीं है। वह वृद्धि किन्हीं बाह्य पदार्थों अथवा शुभराग में से नहीं आती है। अन्तर में ज्ञानशक्ति का भण्डार पड़ा है, उसमें से अपने पुरुषार्थ द्वारा वह प्रगट होती है। ज्ञान के ज्वार की तरंगें चैतन्य समुद्र के मध्यबिंदु में से उछलती हैं। प्रवचन समुद्र बिंदु में, उछटी आवे जैसे । पूर्व चौदह की लब्धि का, उदाहरण भी तैसे ॥ (श्रीमद् राजचद्र) समुद्र में ज्वार आता है उसका क्या कारण है ? ऊपर से खूब वर्षा हो रही है, अतः ज्वार आया है क्या? बहुत-सी नदियाँ आकर समुद्र में मिलती हैं, अतः समुद्र उछल रहा है क्या? नहीं; चाहे जितनी नदियाँ मिलें और चाहे जितनी वर्षा हो रही हो तो भी समुद्र के उस ज्वार को बाहर के पानी का अवलंबन नहीं है। वह ज्वार तो समुद्र के मध्यबिंदु में से आता है। इसी न्याय से इस चैतन्यस्वभाव के मध्यबिंदु में ज्ञान का ज्वार उछलता है। आत्मा शुद्ध चिदानंदस्वरूप है, उसमें एकाग्रता करने पर जो शक्तियाँ अंतर में विद्यमान हैं, उनमें से वह प्रगट होती है । बाह्य वाणी, भगवान अथवा गुरु संबंधी किसी शुभराग में से वह वृद्धि नहीं होती है। उसे राग तथा श्रवण का आधार नहीं है। वे ज्ञान की तरंगें अंतरशक्तिस्वभाव चैतन्यसमुद्र में से उछलकर प्रगट होती हैं। ज्ञान की वृद्धि के समय बाह्य पदार्थों पर मात्र उपचार किया जाता है। __ कोई कहता है कि शास्त्र वाँचन किया; अतः ज्ञान में वृद्धि हुई और शास्त्र में भी लेख आता है कि शिष्य विनय से पढ़ता है तो ज्ञान की वृद्धि होती है।
SR No.007143
Book TitleAling Grahan Pravachan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorYashpal Jain
PublisherTodarmal Granthamala Jaipur
Publication Year2001
Total Pages94
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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