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________________ २० अलिंगग्रहण प्रवचन आंशिक स्वसंवेदन प्रत्यक्षज्ञान होना चाहिये। स्वसंवेदनसहित अनुमान ज्ञान द्वारा जाने, वही यथार्थ ज्ञान कहलाता है। स्वसंवेदन बिना मात्र अनुमान वह सच्चा अनुमान भी नहीं कहलाता है। क्रिया का स्वरूप प्रश्न : यह सब जानने के पश्चात् हमारी मानी हुई क्रिया करना तो यथार्थ है न? समझपूर्वक क्रिया करने में क्या बाधा है? उत्तर : समझपूर्वक क्रिया में राग की और शरीर की क्रिया नहीं आती है। आत्मा के भान बिना विधि किसको कहना? जो तुझे सच्ची समझ हुई होगी तो तुझे यह प्रश्न ही नहीं होगा; क्योंकि समझ कहने से उसमें ज्ञान की क्रिया आती है और शरीर तथा राग की क्रिया का निषेध होता है। प्रश्न : ज्ञानपूर्वक क्रिया में हमारी मानी हुई क्रिया का मिश्रण करें तो? उत्तर : भाई, दूधपाक में किंचित् विष मिलते ही सारा दूधपाक विषरूप हो जाता है और खाने के काम में नहीं आता; उसीप्रकार मात्र परलक्षी ज्ञान करके उसके साथ शरीर की तथा राग की क्रिया मिलाना, यह एकांत मिथ्यात्व __जीव, शरीर की क्रिया कर ही नहीं सकता है और अपूर्ण दशा में राग होता है, उस राग के करने का अभिप्राय भी ज्ञानी को नहीं है। शरीर और राग का ज्ञाता है, ऐसा आत्मा का स्वरूप है; ऐसा समझना यह समझपूर्वक की क्रिया है। समझपूर्वक की क्रिया कहते ही शरीर की तथा राग की क्रिया का निषेध हो जाता है। आत्मा बाहर के किसी लिंग से ज्ञात नहीं होता, ऐसा यह एक ज्ञेयपदार्थ है। उसका वैसा ज्ञान करना, वही सच्ची क्रिया है। ___ यहाँ तो ऐसा कहना है कि अनुमानज्ञानमात्र से आत्मा ज्ञात हो, ऐसा नहीं है। इससे निम्न न्याय फलित होते हैं। प्रत्यक्ष-परोक्ष ज्ञान के न्याय १. अनुमान ज्ञानमात्र से आत्मा ज्ञात होने योग्य हो तो प्रत्यक्ष ज्ञान और उसका विषय (का अस्तित्व) नहीं रहते; परन्तु उसप्रकार नहीं बन सकता।
SR No.007143
Book TitleAling Grahan Pravachan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorYashpal Jain
PublisherTodarmal Granthamala Jaipur
Publication Year2001
Total Pages94
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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