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________________ सम्यग्दर्शन और उसका विषय (प्रथम) गुरु ही निमित्त होते हैं अन्य नहीं। जैसे संस्कृत भाषा सीखने के अभिलाषी विद्यार्थी को आंग्ल भाषा-भाषी अध्यापक निमित्त नहीं होता ! उसी प्रकार तत्त्व की सच्ची समझ में मिथ्या देव-शास्त्र-गुरु निमित्त नहीं होते। सम्यग्दर्शन जब भी होता है, सच्चे देव-शास्त्र-गुरु की एकान्त श्रद्धा अर्थात् भक्तिपूर्वक ही होता है। अतएव सच्चे देवशास्त्र-गुरु के प्रति होनेवाले शुभविकल्पों को भी व्यवहार सम्यग्दर्शन की संज्ञा दी जाती है। वास्तव में वे शुभविकल्प सम्यग्दर्शन नहीं हैं। इसीप्रकार आगम में जीवादि सात तत्त्वों की श्रद्धा को भी सम्यग्दर्शन कहा। यह कथन भी निमित्त की ओर से है, वास्तविक नहीं; क्योंकि वह सम्यग्दर्शन नहीं, सम्यग्दर्शन का निमित्त होने के कारण ऐसा उपचार किया गया है। निमित्त भी कब बनता है ? जब उनको (सात ही तत्त्वों को) हेय मानकर और निरपेक्ष शुद्ध चैतन्य को उपादेय माना, सात तत्त्वों को एक ओर रखा, अदृश्य कर दिया, उनके भी विकल्प तोड़कर उनकी अनेकरूपता या एकरूपता में भी हेयत्व दृष्टि व उनमें 'मैं यह हूँ ऐसे अहंमय मिथ्यादर्शन का विसर्जन करता हुआ, शुद्ध चैतन्य की ओर एक बार झाँका, तो उसी क्षण सम्यग्दर्शन (सच्ची श्रद्धा) का प्रादुर्भाव होता है। तब सात तत्त्व को निमित्त कहा जाता है। सत्य पुरुषार्थ द्वारा सात तत्त्वों को निमित्त बनाकर, फिर उसकी निमित्तता छोड़कर उनको हेय जानकर, ये 'मैं नहीं जानकर, 'ये मेरे ज्ञेय भी नहीं', इनकी ओर से श्रद्धा व ज्ञान को खींचकर, त्रिकाली शुद्ध चैतन्य पर स्थापित किया, इसी प्रथम अनुभूति में विलक्षण आनंद का मधुरिम स्वाद आता है, तब सात तत्त्व सभ्यग्दर्शन के निमित्त कहे जाते हैं।
SR No.007142
Book TitleChaitanya Ki Chahal Pahal
Original Sutra AuthorN/A
AuthorYugal Jain, Nilima Jain
PublisherDigambar Jain Mumukshu Mandal
Publication Year2012
Total Pages66
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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