SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 71
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ चिद्काय की आराधना/69 'निरूपम अलेप स्वरूपोऽहम्' दर्शन जु ज्ञान असें सुख अनन्त जानो। है निराबाध अवगाह अगुरुलघुबखानो।। सूक्ष्म सुवीरज अनन्तों गुण अनूपा। लिप्त हुआ सु मम आतम एक भूपा।। ___ शुद्धात्मा के उपमातीत गुणों को रत्नत्रयरूप सूर्य की तेज किरणों से प्रकाश में लाया जा सकता है। निज चिद्काय की आराधना से ज्ञानावरण कर्म का लेप दूर होकर अनन्त क्षायिक ज्ञान प्रगट होता है, दर्शनावरण कर्म का लेप दूर होकर अनन्त क्षायिक दर्शन प्रगट होता है, मोहनीय कर्म का क्षय होकर अनंत सुख प्रगट होता है, अन्तराय कर्म का क्षय होकर अंनत वीर्य प्रगट होता है, वेदनीय कर्म का क्षय होकर अव्याबाधत्व गुण प्रगट होता है, नाम कर्म का क्षय होकर सूक्ष्मत्व (अमूर्तत्व) गुण प्रगट होता है, गोत्र कर्म का क्षय होकर अगुरुलघुत्व गुण प्रगट होता है और आयुकर्म का क्षय होकर अवगाहनत्व गुण प्रगट होता है। . कर्मों से आच्छादित आत्मा निज चिद्काय की आराधना से ही उपमातीत गुणों का प्रकाशन करता है। ___हे प्रभु! अन्दर देखो। तुम्हारा चिद्काय प्रभु शुद्धात्मा अनुपम गुणों से युक्त है। उपमातीत गुणों का स्वामीपना उसका स्वभाव है। तुम्हारे गुणों पर कर्मों का आच्छादन है, उसको हटाकर अपने गुणों को प्रकाशित करने का पुरुषार्थ करो। प्रतिदिन ध्यान का अभ्यास करो, जिससे पर्याय में निर्मल दशा प्रगट हो। यही एक मार्ग है। अपने उपयोग को अपनी चिद्काया में, अपने प्रभु में लगाने का अभ्यास करने से कर्म कटेंगे और परमात्मा दशा प्रकट होगी। परमात्मा बनने का यही उपाय है। शेष सब संसार भ्रमण के कारण हैं, मायाजाल है। जिसने इन्द्रियज्ञान को जीता, उसने जीतने योग्य सब जीता। जिसने अपनी चिद्काया को पाया, उसने पाने योग्य सब पाया।
SR No.007134
Book TitleChidkay Ki Aradhana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJaganmal Sethi
PublisherUmradevi Jaganmal Sethi
Publication Year2000
Total Pages100
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy