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________________ 34/चिद्काय की आराधना - 'राग परिणाम शून्योऽहम्' यह राग आग दहै सदा, ताः समामृत सेइये। चिर भजे विषय कषाय अब तो, त्याग निज पद बेइये।। मेरी चिद्काय स्वभाव से राग, द्वेष, मोह से रहित है; क्रोध, मान, माया, लोभ से रहित है; पाँचो इन्द्रियों के विषय स्पर्श, रस, गन्ध, वर्ण और शब्द से रहित है; मन, वचन, काय की समस्त क्रियाओं से रहितं है; राग-द्वेष आदि भावकर्म, ज्ञानावरणादि द्रव्यकर्म तथा शरीरादि नोकर्म से रहित है। ख्याति, लाभ, पूजा, सुने हुए व अनुभव किये हुए इष्ट भोगों की आकांक्षा से रहित है; निदान, माया तथा मिथ्यात्व शल्यों से रहित है। रस गारव, ऋद्धि गारव, स्वास्थ्य गारव; इन तीनों गारव, मानों से रहित है। मनोदंड, वचनदंड, कायदंड; इन तीनों दंडों से रहित है। हे भव्य! राग परिणाम आत्मगुणों को नष्ट कर जीव को संसार में नाना असह्य शारीरिक और मानसिक दुःखा का अनुभव कराने वाला है। यह बहिर्मुखता से उत्पन्न होता है। बाह्य पदार्थों को विषय किये बिना रागादि परिणामों की उत्पत्ति नहीं होती है। रागादि परिणामों का अभाव करने के लिये सुख-दुःख, मित्र-शत्रु, इष्ट-वियोग, अनिष्ट-संयोग, श्मशान या महल सब में समता भाव धारण कर अंतर्मुखता का अभ्यास करो। राग परिणामों से शून्य अनन्त महिमावन्त गुणों से युक्त अपनी चिद्काय का सतत ध्यान करो। ध्यान के बल से यह चिद्काय अरिहन्त-सिद्धरूप परिणमन करती है। अनन्त काल से विषय कषायों की ही पुष्टि की है। अब विषय कषायों का त्याग कर निज पद अर्थात् अपनी चिद्काय को प्राप्त करने का पुरुषार्थ करो। तुम अपने शरीर सदन में विराजमान शोभा सम्पन्न सिद्ध भगवान समान निज चिद्काय का सदा अनुभव करो। शरीर में पाये जाने वाले परम विशुद्ध चैतन्य स्वरूप कर्ममल रहित शुद्धात्मा का दर्शन, अवलोकन करो और अन्त में केवलज्ञानरूपी क्रीड़ा के द्वारा मोक्ष को प्राप्त करो।
SR No.007134
Book TitleChidkay Ki Aradhana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJaganmal Sethi
PublisherUmradevi Jaganmal Sethi
Publication Year2000
Total Pages100
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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