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________________ चिद्काय की आराधना/13 राजा अर्थात् भगवान। इस पर से यह अर्थ स्वाभाविकरूप से निकलता है कि जो दुःख नहीं चाहते हैं, उनको जीव राजा के प्रतिपक्ष पर द्रव्यों को नहीं जानना चाहिए। यही शुद्धोपयोग तुम्हारा स्वभाव है और प्रगट पर्याय में तुम्हारे भगवान होने का कारण है। जिनको संसार के दुःखों से थकान लगी हो, जो इस संसार समुद्र से पार होना चाहते हों, जो चारों गतियों से भयभीत हैं, ऐसे जीवो को गुरु कहते हैं कि महान भाग्य से मनुष्य भव मिला है, जैन कुल मिला है, सब तरह के साधन मिले हैं, ऐसे पंचम काल में जहाँ चारों और विषय-कषायों का बोलबाला है, ऐसे. निकृष्ट काल में भी हमें महान पुण्य उदय से समयसार आदि ग्रंथ मिले हैं। इन आगमों का सार एक भगवान आत्मा का ध्यान करना ही है। श्री शिवकोटि आचार्य भगवती आराधना में कहते हैं कि हमें महान पुण्य के उदय से मनुष्य भव मिला है, जैन कुल मिला है, सब तरह के साधन मिले हैं। सम्यग्दर्शन की प्राप्ति नहीं हुई तो यह मनुष्य भव व्यर्थ ही जानो। एक तरफ सम्यग्दर्शन का लाभ होता हो, दूसरी तरफ तीन लोक का राज्य मिलता हो तो तीन लोक का राज्य छोड़कर सम्यग्दर्शन का लाभ लेना। तीन लोक के राज्य का नियत काल में पतन होगा और सम्यग्दर्शन का लाभ हो जायेगा तो शीघ्र ही अविनाशी मोक्षसुख को पायेगा। ऐसी सम्यग्दर्शन की महिमा है। सम्यग्दर्शन होने पर ही सम्यग्ज्ञान और सम्यक्चारित्र होते हैं। .. समयसार में कहा है.. 'व्रत और नियमों को धारण करते हुए तथा शील और तप करते हुए भीजो परमार्थ से बाह्य हैं, जिन्हें परमार्थभूत आत्मा की, अपनी चिद्काय की अनुभूति नहीं है, वे निर्वाण को प्राप्त नहीं करते।' पंडित मक्खनलाल जी ने भव्यप्रमोद में अज्ञानी को निम्न चेतावनी दी है चारों वेद पुराण अठारह, षट् दर्शन पढ़ लीना है। पंडित-शास्त्री-न्यायतीर्थ-उपदेशक बने प्रवीना है।। ।
SR No.007134
Book TitleChidkay Ki Aradhana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJaganmal Sethi
PublisherUmradevi Jaganmal Sethi
Publication Year2000
Total Pages100
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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