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________________ श्री सिद्धपरमेष्ठी विधान/७१ कर्म उदय से मधुर सुरी मृदु स्वर हो जाता है स्वामी। नामकर्म की सुस्वर प्रकृति विनाश करूँ अन्तर्यामी॥ नामकर्म की सर्व प्रकृतियाँ हैं तिरानवे भवदुख-मूल । निज पुरुषार्थ शक्ति से सबको नाश करूँ मैं नाथ समूल ॥७९॥ ॐ ह्रीं सुस्वरनामकर्मविरहितश्रीसिद्धपरमेष्ठिभ्यो अनर्घ्यपदप्राप्तये अर्घ्य नि.। कर्म उदय से कटु कठोर स्वर हो ही जाता है स्वामी। नामकर्म की दुःस्वर प्रकृति विनाश करूँ अन्तर्यामी॥ नामकर्म की सर्व प्रकृतियाँ हैं तिरानवे भवदुख-मूल। निज पुरुषार्थ शक्ति से सबको नाश करूँ मैं नाथ समूल ॥८॥ ॐ ह्रीं दुःस्वरनामकर्मविरहितश्रीसिद्धपरमेष्ठिभ्यो अनर्घ्यपदप्राप्तये अर्घ्य नि.। कर्म उदय से तन के अवयव सुन्दर होते हैं स्वामी। नामकर्म की यही शुभ प्रकृति क्षय करना है हे स्वामी॥ नामकर्म की सर्व प्रकृतियाँ हैं तिरानवे भवदुख-मूल। निज पुरुषार्थ शक्ति से सबको नाश करूँ मैं नाथ समूल ॥८१॥ ॐ ह्रीं शुभनामकर्मविरहितश्रीसिद्धपरमेष्ठिभ्यो अनर्घ्यपदप्राप्तये अर्घ्य नि.। कर्म उदय से तन के अवयव होते कभी नहीं मनहर । नामकर्म की अशुभ प्रकृति मुझको क्षय करना है सत्वर । नामकर्म की सर्व प्रकृतियाँ हैं तिरानवे भवदुख-मूल । निज पुरुषार्थ शक्ति से सबको नाश करूँ मैं नाथ समूल ॥८२॥ ॐ ह्रीं अशुभनामकर्मविरहितश्रीसिद्धपरमेष्ठिभ्यो अनर्घ्यपदप्राप्तये अर्घ्य नि.। कर्म उदय से कहीं न रुकनेवाला तन होता है प्राप्त। सूक्ष्म शरीर नामकर्म की प्रकृति विनायूँ हे प्रभु आप्त । नामकर्म की सर्व प्रकृतियाँ हैं तिरानवे भवदुख-मूल । निज पुरुषार्थ शक्ति से सबको नाश करूँ मैं नाथ समूल ॥८॥ ॐ ह्रीं सूक्ष्मनामकविरहितश्रीसिद्धपरमेष्ठिभ्यो अनर्घ्यपदप्राप्तये अर्घ्य नि.।
SR No.007133
Book TitleSiddha Parmeshthi Vidhan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRajmal Pavaiya
PublisherKundkund Pravachan Prasaran Samsthan
Publication Year
Total Pages98
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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