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________________ — श्री सिद्धपरमेष्ठी विधान/४० मोहनीय का नाश करूँगा निज स्वभाव बल से स्वामी। दर्शनमोह चारित्र मोह जीतूंगा अब अन्तर्यामी ॥७॥ ॐ ह्रीं स्त्रीवेदमोहनीयकर्मविरहितश्रीसिद्धपरमेष्ठिभ्योअनर्घ्यपदप्राप्तये अर्घ्य नि.। मोहनीय की प्रकृति विनायूँ पुरुषवेद नामक स्वामी। वेद भाव सम्पूर्ण मिटाऊँ करूँ यत्न अन्तर्यामी ॥ मोहनीय का नाश करूँगा निज स्वभाव बल से स्वामी। दर्शनमोह चारित्र मोह जीतूंगा अब अन्तर्यामी ॥८॥ ॐ ह्रीं पुरुषवेदमोहनीयकर्मविरहितश्रीसिद्धपरमेष्ठिभ्यो अनर्घ्यपदप्राप्तये अर्घ्य नि. प्रकृति नपुंसकवेद घोर दुखदायी नष्ट करूँ स्वामी। वेद भाव सम्पूर्ण मिटाऊँ करूँ यत्न अन्तर्यामी । मोहनीय का नाश करूँगा निज स्वभाव बल से स्वामी। दर्शनमोह चारित्र मोह जीतूंगा अब अन्तर्यामी । . ये कषाय के ही नव भेद विनाश करूँ अब तो भगवन । जीतूं प्रभु सम्पूर्ण मोह को प्राप्त करूँ अपना चिद्घन ॥९॥ ॐ ह्रीं नपुंसकवेदकर्मविरहितश्रीसिद्धपरमेष्ठिभ्यो अनर्घ्यपदप्राप्तये अर्घ्य नि.। मोहनीय की शोक प्रकृति सम्पूर्णतया नाळू स्वामी। आर्त्त-ध्यानमय शोक न हो प्रभु यत्न करूँ अन्तर्यामी॥ मोहनीय का नाश करूँगा निज स्वभाव बल से स्वामी। दर्शनमोह चारित्र मोह जीतूंगा अब अन्तर्यामी ॥१०॥ ॐ ह्रीं शोककर्मविरहितश्रीसिद्धपरमेभ्यो अनर्घ्यपदप्राप्तये अर्घ्य नि.। मोहनीय भय प्रकृति विनायूँ निर्भय होकर हे स्वामी। सप्तभयों से रहित बनूँ अब करूँ यत्न अन्तर्यामी॥ मोहनीय का नाश करूँगा निज स्वभाव बल से स्वामी। दर्शनमोह चारित्र मोह जीतूंगा अब अन्तर्यामी ॥११॥ | ॐ ह्रीं भयकर्मविरहितश्रीसिद्धपरमेष्ठिभ्यो अनर्घ्यपदप्राप्तये अर्घ्य नि.।
SR No.007133
Book TitleSiddha Parmeshthi Vidhan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRajmal Pavaiya
PublisherKundkund Pravachan Prasaran Samsthan
Publication Year
Total Pages98
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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