SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 39
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ श्री सिद्धपरमेष्ठी विधान/३६ - पूजन क्र. ६ मोहनीयकर्म विरहित श्री सिद्धपरमेष्ठी पूजन स्थापना (छंद - कुण्डलिया) मोहनीय की प्रकृतियाँ अट्ठाईस विनाश। .. हुए सिद्ध भगवंत प्रभु पाया ज्ञान प्रकाश ॥ पाया ज्ञान प्रकाश घातिया चारों क्षयकर। निमिष मात्र में त्रेसठ कर्म प्रकृतियाँ जयकर ॥ मैं अब पूजन करता हूँ निज-वन्दनीय की। अट्ठाईस प्रकृति नायूँ इस मोहनीय की॥ ॐ ह्रीं मोहनीयकर्मविरहितश्रीसिद्धपरमेष्ठिसमूह ! अत्र अवतर अवतर संवौषट्। ॐ ह्रीं मोहनीयकर्मविरहितश्रीसिद्धपरमेष्ठिसमूह ! अत्र तिष्ठ तिष्ठ ठः ठः। ॐ ह्रीं मोहनीयकर्मविरहितश्रीसिद्धपरमेष्ठिसमूह! अत्र मम सन्निहितो भव भव वषट्। (छंद -अवतार) जन्मादि रोग त्रय नाश, हित निज गुण गाऊँ। शुभ-अशुभ विकारी भाव, पर मैं जय पाऊँ॥ कर मोहनीय का नाश, समकित गुण पाऊँ। क्षय अट्ठाईस प्रकृति, करूँ निज सुख पाऊँ। ॐ ह्रीं मोहनीयकर्मविरहितश्रीसिद्धपरमेष्ठिभ्यो जन्मजरामृत्युविनाशनाय जलं नि.। भव-तप हर चंदन शुद्ध, भावमयी लाऊँ। शुभ-अशुभ विकारी भाव, पर मैं जय पाऊँ॥ कर मोहनीय का नाश, समकित गुण पाऊँ। क्षय अट्ठाईस प्रकृति, करूँ निज सुख पाऊँ। ॐ ह्रीं मोहनीयकर्मविरहितश्रीसिद्धपरमेष्ठिभ्यो संसारतापविनाशनाय चंदनं नि.।।
SR No.007133
Book TitleSiddha Parmeshthi Vidhan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRajmal Pavaiya
PublisherKundkund Pravachan Prasaran Samsthan
Publication Year
Total Pages98
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy