SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 31
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ श्री सिद्धपरमेष्ठी विधान/२८ अचक्षु दर्शनावरण विनायूँ सम्यक् दृष्टा हो जाऊँ। भेद दर्शनावरणी के नौ पूर्णतया प्रभु विघटाऊँ॥२॥ ॐ ह्रींअचक्षुदर्शनावरणीकर्मविरहितश्रीसिद्धपरमेष्ठिभ्योअनर्घ्यपदप्राप्तयेअर्घ्य नि.। अवधि दर्शनावरण विनायूँ सम्यक् दृष्टा हो जाऊँ। भेद दर्शनावरणी के नौ पूर्णतया प्रभु विघटाऊँ॥३॥ ॐ ह्रीं अवधिदर्शनावरणीकविरहितश्रीसिद्धपरमेष्ठिभ्यो अनर्घ्यपदप्राप्तये अर्घ्य नि.। केवल दर्शन का आवरण मिटा निज दृष्टा हो जाऊँ। भेद दर्शनावरणी के नौ पूर्णतया प्रभु विघटाऊँ॥४॥ ॐ ह्रींकेवलदर्शनावरणीकर्मविरहितश्रीसिद्धपरमेष्ठिभ्यो अनर्घ्यपदप्राप्तयेअर्घ्य नि.। दर्शन-आवरणी की निद्रा प्रकृति विनायूँ सुख पाऊँ। भेद दर्शनावरणी के नौ पूर्णतया प्रभु विघटाऊँ॥५॥ ॐ ह्रीं निद्रादर्शनावरणीकर्मविरहितश्रीसिद्धपरमेष्ठिभ्यो अनर्घ्यपदप्राप्तये अर्घ्य नि.। निद्रा-निद्रा प्रकृति विनायूँ जागृत दृष्टा हो जाऊँ। भेद दर्शनावरणी के नौ पूर्णतया प्रभु विघटाऊँ॥६॥ ॐ ह्रीं निद्रा-निद्रा दर्शनावरणीकर्मविरहितश्रीसिद्धपरमेष्ठिभ्यो अनर्घ्यपद प्राप्तये अर्घ्य नि.। दर्शन आवरणी की प्रचला प्रकृति विनायूँनिज बलसे। भेद दर्शनावरणी के नौ नायूँ शुद्ध आत्मबल से॥७॥ ॐ ह्रीं प्रचला दर्शनावरणीकर्मविरहितश्रीसिद्धपरमेष्ठिभ्यो अनर्घ्यपदप्राप्तये अर्घ्य नि./ प्रचला-प्रचला प्रकृति विनायूँ पूर्ण जागृत रहूँ सदा। भेद दर्शनावरणी के नौ नायूँ बनूँ आत्मदृष्टा ॥८॥ ॐ ह्रीं प्रचला-प्रचलादर्शनावरणीकर्मविरहितश्रीसिद्धपरमेष्ठिभ्यो अनर्घ्यपदप्राप्तये अर्घ्य नि.। दर्शन आवरणी की प्रकृति स्त्यानगृद्धि पूरी नायूँ। ___ भेद दर्शनावरणी के नौ नायूँ निज बल प्रकायूँ॥९॥ ॐ ह्रीं स्त्यानगृद्धिदर्शनावरणीकर्मविरहितश्रीसिद्धपरमेष्ठिभ्यो अनर्घ्यपदप्राप्तये के अर्घ्य नि.।
SR No.007133
Book TitleSiddha Parmeshthi Vidhan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRajmal Pavaiya
PublisherKundkund Pravachan Prasaran Samsthan
Publication Year
Total Pages98
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy