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________________ श्री सिद्धपरमेष्ठी विधान/२० ज्ञानावरणी कर्म विनाशक सिद्ध प्रभु को वन्दन। . पाँच प्रकृतियों के क्षयकर्ता ज्ञान सूर्य अभिनन्दन ॥ ॐ ह्रीं ज्ञानावरणीकर्मविरहितश्रीसिद्धपरमेष्ठिभ्यो संसारतापविनाशनाय 'चंदन निर्वपामीति स्वाहा। अक्षत जीवन क्षत है मेरा अक्षय पद कब पाऊँ। भवसागर से तर जाने को अक्षत शालि चढाऊँ॥ ज्ञानावरणी कर्म विनाशक सिद्ध प्रभु को वन्दन । पाँच प्रकृतियों के क्षयकर्ता ज्ञानसूर्य अभिनन्दन ।। ॐ ह्रीं ज्ञानावरणीकर्मविरहितश्रीसिद्धपरमेष्ठिभ्यो अक्षयपदप्राप्तये अक्षतान् निर्वपामीति स्वाहा। कामबाण की पीड़ा नायूँ पुष्प मनोज्ञ चढ़ाऊँ। अविकारी भावों को पाकर महाशील गुण पाऊँ॥ ज्ञानावरणी कर्म विनाशक सिद्ध प्रभु को वन्दन। पाँच प्रकृतियों के क्षयकर्ता ज्ञानसूर्य अभिनन्दन ॥ ॐ ह्रीं ज्ञानावरणीकर्मविरहित श्रीसिद्धपरमेष्ठिभ्यो कामबाणविध्वंसनाय पुष्पं निर्वपामीति स्वाहा। क्षुधारोग विध्वंस हेतु मैं शुभ नैवेद्य चढ़ाऊँ। मैं तो नाथ अनाहारी हूँ अनुपम पद प्रकटाऊँ॥ ज्ञानावरणी कर्म विनाशक सिद्ध प्रभु को वन्दन। पाँच प्रकृतियों के क्षयकर्ता ज्ञानसूर्य अभिनन्दन ॥ ॐ ह्रीं ज्ञानावरणीकर्मविरहितश्रीसिद्धपरमेष्ठिभ्यो क्षुधारोगविनाशनाय नैवेद्यं निर्वपामीति स्वाहा। महामोहतम ध्वंस करूँ मैं दीप ज्ञान के लाऊँ। युगपत् लोकालोक सु झलके 'केवलज्ञान उपाऊँ। ज्ञानावरणी कर्म विनाशक सिद्ध प्रभु को वन्दन । पाँच प्रकृतियों के क्षयकर्ता ज्ञानसूर्य अभिनन्दन ॥ । ॐ ह्रीं ज्ञानावरणीकर्मविरहितश्रीसिद्धपरमेष्ठिभ्यो मोहान्धकारविनाशनाय ने दीपं निर्वपामीति स्वाहा।
SR No.007133
Book TitleSiddha Parmeshthi Vidhan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRajmal Pavaiya
PublisherKundkund Pravachan Prasaran Samsthan
Publication Year
Total Pages98
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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