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________________ श्री सिद्धपरमेष्ठी विधान/१२ पूजन क्र. २ श्री सिद्ध परमेष्ठी विधान समुच्चय पूजन स्थापना (छंद - ताटक) अष्ट गुणों से भूषित परम सिद्ध परमेष्ठी को वन्दन । ज्ञानावरणादिक कर्मों को हर कर पाया मुक्ति सदन ॥ गुण अनंत की महिमा पायी मुख्य अष्ट गुण प्रकटाए। सिद्धपुरी सिंहासन पाकर सिद्ध शिला पति कहलाए॥ विनयपूर्वक अष्टगुणों की पूजन का जागा उर भाव । अष्ट-स्वगुण मैं भी पाऊँ प्रभु अष्टकर्म का करूँ अभाव॥ ॐ ह्रीं अष्टगुणसमन्वितश्रीसिद्धपरमेष्ठिसमूह ! अत्र अवतर अवतर संवौषट्। ॐ ह्रीं अष्टगुणसमन्वितश्रीसिद्धपरमेष्ठिसमूह ! अत्र तिष्ठ तिष्ठ ठः ठः। ॐ ह्रीं अष्टगुणसमन्वितश्रीसिद्धपरमेष्ठिसमूह! अत्रमम सन्निहितोभवभववषट्। (छंद - मानव). निज शुद्धभाव जल लाऊँ सिद्धों के गुण ही गाऊँ। जन्मादि रोगत्रय क्षयहित शिवपथ पर चरण बढ़ाऊँ॥ हैं श्री सिद्ध परमेष्ठी प्रभु गुण अनंत से भूषित। मैं मुख्य अष्टगुण पूजू हो जाऊँ भवदुख विरहित ॥ ॐ ह्रीं अष्टगुणसमन्वितश्रीसिद्धपरमेष्ठिभ्यो जन्मजरामृत्युविनाशनाय जलं नि./ निज शुद्धभाव का चंदन शीतल निज उर में लाऊँ। भवज्वर संपूर्ण मिटाऊँ तुम सम शीतलता पाऊँ॥ हैं श्री सिद्ध परमेष्ठी प्रभु गुण अनंत से भूषित। मैं मुख्य अष्टगुण पूर्जे हो जाऊँ भवदुख विरहित ॥ ॐ ह्रीं अष्टगुणसमन्वितश्रीसिद्धपरमेष्ठिभ्यो संसारतापविनाशनाय चंदनं नि.।
SR No.007133
Book TitleSiddha Parmeshthi Vidhan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRajmal Pavaiya
PublisherKundkund Pravachan Prasaran Samsthan
Publication Year
Total Pages98
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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