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________________ आगम-अध्यात्मपद्धति की अनन्ता लेता है। अरे! ज्ञान में तो अनन्तगुणी सामर्थ्य विकसित हुई है। प्रश्न – यहाँ वृक्ष और बीज के दृष्टान्त द्वारा विकार और कर्म की परम्परा भी अनन्त कही, ऐसी दशा में विकार का नाश होकर मोक्ष कैसे होगा? उत्तर - वृक्ष और बीज की परम्परा सामान्यरूप से अनन्त है, परन्तु फिर भी सभी बीजों में से वृक्ष उगे ही - ऐसा नियम नहीं है; अनेक बीज उगने से पहले ही दग्ध हो जाते हैं और उनमें से वृक्ष बनने की परम्परा का अन्त आ जाता है। एक बार जो बीज दग्ध हो गया, वह पुनः कभी उग नहीं सकता। उसीप्रकार जगत में सामान्यरूप से विकार और कर्म की परम्परा अनन्त है, उसका जगत में से कभी अभाव होनेवाला नहीं, परन्तु ऐसा होने पर भी सभी जीवों में विकार की परम्परा चलती ही रहे – ऐसा भी नियम नहीं है। बहुत से जीव पुरुषार्थ द्वारा विकार की परम्परा तोड़कर सिद्धपद को प्राप्त करते हैं, उनके विकार की परम्परा का अन्त आ जाता है। जिसने एकबार विकार के बीज को दग्ध कर दिया, उसको पुनः कभी विकार होता नहीं - इसप्रकार विकार की श्रृंखला टूट भी सकती है। प्रश्न - विकार की परम्परा तो अनादि की है, तो फिर उसका अन्त कैसे आवे? उत्तर - अनादिकालीन परम्परा का अन्त आवे ही नहीं - ऐसा तो नहीं है। जैसे वृक्ष व बीज की परम्परा अनादि की होने पर भी किसी एक बीज के दग्ध हो जाने पर उसकी परम्परा का अन्त आ जाता है, तदनुसार विकार की परम्परा अनादि की होने पर भी सम्यग्दर्शन-ज्ञान-चारित्र से धर्मीजीव के द्वारा उसका अन्त आ जाता है। जिसप्रकार मोक्षमार्ग अनादि से न होने पर भी उसका नवीन प्रारम्भ हो सकता है; उसीप्रकार विकार अनादि का होने पर भी उसका अन्त हो सकता है। प्रश्न - आगम और अध्यात्म दोनों में अनन्तता कही, वह किसप्रकार?
SR No.007132
Book TitleParmarth Vachanika Pravachan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHukamchand Bharilla, Rakesh Jain, Gambhirchand Jain
PublisherTodarmal Granthamala Jaipur
Publication Year2008
Total Pages98
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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