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________________ गाथा १०३ : निश्चयप्रत्याख्यानाधिकार इसके बाद टीकाकार मुनिराज तथा चोक्तं प्रवचनसार व्याख्यायाम् तथा प्रवचनसार की व्याख्या तत्त्वप्रदीपिका टीका में भी कहा है ऐसा लिखकर एक छन्द प्रस्तुत करते हैं; जो इसप्रकार है ( वसंततिलका ) १११ द्रव्यानुसारि चरणं चरणानुसारि द्रव्यं मिथो द्वयमिदं ननु सव्यपेक्षम् । तस्मान्मुमुक्षुधिरोहतु मोक्षमार्गं - द्रव्यं प्रतीत्य यदि वा चरणं प्रतीत्य ।। ५६ ।।' (दोहा) चरण द्रव्य अनुसार हो द्रव्य चरण अनुसार । शिवपथगामी बनो तुम दोनों के अनुसार || ५६॥ चरण द्रव्यानुसार होता है और द्रव्य चरणानुसार होता है - इसप्रकार वे दोनों परस्पर सापेक्ष हैं; इसलिए या तो द्रव्य का आश्रय लेकर अथवा तो चरण का आश्रय लेकर मुमुक्षु अर्थात् ज्ञानी श्रावक और मुनिराज मोक्षमार्ग में आरोहण करो । इस छन्द पर प्रवचन करते हुए स्वामीजी अपने भावों को इसप्रकार प्रस्तुत करते हैं - " भाई ! चरण द्रव्य के अनुसार होता है । द्रव्य की श्रद्धा - ज्ञान करके यथाशक्ति स्थिरता होते ही राग संहज ही निकल जाता है और द्रव्य के ज्ञान बिना राग यथार्थ रीति से मंद भी नहीं होता है । - आत्मा का ज्ञान चरण अनुसार होता है। जो जीव माँस भक्षण करता हो, शराब पीता हो, लंपट हो, काले धंधे करता हो, हजारों लोगों के नुकसान का भाव रखता हो, अनीति करता हो, निंद्य कार्य करता हो; उसे तो कभी भी आत्मा का भान नहीं हो सकता, मुमुक्षुपने के लायक ही नहीं है; परन्तु मैं अपना हित कर सकता हूँऐसे वैराग्यभाववाले जीव को जितने प्रमाण में राग घटा है, उतने प्रमाण १. प्रवचनसार, श्लोक १२ वह
SR No.007131
Book TitleNiyamsar Anushilan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHukamchand Bharilla
PublisherTodarmal Granthamala Jaipur
Publication Year2010
Total Pages270
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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