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________________ 30 जैन धर्म : सार सन्देश वस्त्र लपेटने और कन्धे के ऊपर वस्त्र डालने की अनुमति दी थी। पर वर्द्धमान महावीर ने वस्त्र के पूर्ण त्याग का नियम बना दिया। इसलिए केशी ने महावीर के शिष्य गौतम से पूछाः दोनों धर्मों का उद्देश्य एक ही है, फिर यह अन्तर क्यों?17 इस पर गौतम ने उत्तर दिया: पार्श्वनाथ अपने समय को भली-भाँति जानते थे। इसलिए अपने समय के लोगों के लिए उन्होंने चातुर्याम का उपदेश दिया। पर इस समय के लोगों के लिए जैन धर्म को उपयोगी बनाने के लिए महावीर ने उन्हीं चार यामों को पाँच यामों के रूप में उपस्थित किया। वास्तव में दोनों तीर्थंकरों के उपदेशों में कोई तात्त्विक अन्तर नहीं है।18 महावीर और पार्श्वनाथ के परिनिर्वाण-काल में 250 वर्षों का अन्तर है। लगता है कि इस लम्बे समय के बीच कुछ लोग आचार-नियमों के पालन में ढिलाई करने लगे थे। इसीलिए महावीर ने ब्रह्मचर्य व्रत को, जो पहले अपरिग्रह में ही सम्मिलित माना जाता था, एक स्वतन्त्र व्रत का रूप दे दिया। इसी प्रकार उन्होंने यह अनुभव किया कि यदि घर-बार और संसार की सभी वस्तुओं का त्याग ही करना है तो वस्त्र का भी पूरी तरह त्याग क्यों न कर दिया जाये? कुछ लोगों का मत है कि नग्न रहने का नियम महवीर का चलाया हुआ नहीं है। वे तो नग्न रहने का विरोध करते थे। जो भी हो, अपने पहले के तीर्थंकरों के उपदेशों को सँवारने-सुधारने, उन्हें विकसित और व्यवस्थित करने, जैन धर्म का स्वरूप निश्चित करने और उसका व्यापक और प्रभावशाली प्रचार कर उसे एक सबल धर्म का रूप देने में महावीर को सबसे अधिक सफलता मिली। जैन धर्म का साहित्य जैन परम्परा के अनुसार तीर्थंकरों या केवलज्ञानियों से प्रकट होनेवाली अलौकिक वाणी या दिव्यध्वनि के आधार पर गणधरों और आचार्यों ने जैन धर्म के मूल ग्रन्थों की रचना की।
SR No.007130
Book TitleJain Dharm Sar Sandesh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKashinath Upadhyay
PublisherRadhaswami Satsang Byas
Publication Year2010
Total Pages394
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size21 MB
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