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________________ दिव्यध्वनि भाषाओं में सुनी जा सकती है उसी प्रकार दिव्यध्वनि भी अपनी विशेषताओं के कारण एक साथ ही अनेक मनुष्यों को उनकी अपनी-अपनी निर्मलता और योग्यता के अनुसार उनकी अपनी ही भाषा में अर्थ ग्रहण कराती है । इस प्रकार निरक्षरी ध्वनि या अक्षरी भाषा के एक होने पर भी श्रोताओं की शक्ति और योग्यता के अनुसार उसे अनेक रूप में ग्रहण किये जाने में कोई असंगति नहीं है । 225 दिव्यध्वनि का प्रभाव कहा जा चुका है कि सभी इच्छाओं से परे तीर्थंकरों के अन्दर से दिव्यध्वनि बिना किसी इच्छा या प्रयत्न के सहज भाव से जीवों के कल्याण के लिए प्रकट होती है। इसलिए परम परोपकारी तीर्थंकरों की दिव्यध्वनि का प्रभाव सदा कल्याणकारक होता है। वे जीव सचमुच ही भाग्यशाली हैं जो अपने पुण्य की प्रेरणा से इस दिव्यध्वनि का अनुभव प्राप्त करते हैं और इसके द्वारा अपने को निर्मल बनाकर तथा अपने सच्चे स्वरूप को पहचानकर सदा के लिए जन्म-मरण के दुःख से मुक्त हो जाते हैं । दिव्यध्वनि गणधरों और योग्य शिष्यों के संशय को दूर कर उन्हें सच्चा ज्ञान प्रदान करती है, उन्हें विशुद्ध बनाती है और उन्हें चारों फलों (धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष) की प्राप्ति करा देती है। जैन धर्म के अनुसार दिव्यध्वनि के द्वारा ही भगवान् महावीर के प्रमुख शिष्य गौतम गणधर का संशय नष्ट हुआ, उन्होंने केवलज्ञान की प्राप्ति की और उसके आधार पर जीवों के कल्याणार्थ जैन ग्रन्थों की रचना की । आचार्य कुमार कार्तिकेय द्वारा रचित कार्तिकेयानुप्रेक्षा नामक ग्रन्थ में प्रश्नोत्तर शैली में दिव्यध्वनिरूप शास्त्र की प्रवृत्ति का कारण बताते हुए कहा गया है: प्रश्न - वीतराग सर्वज्ञ के दिव्यध्वनिरूप शास्त्र की प्रवृत्ति किस कारण से हुई ? उत्तर- भव्य (कल्याणार्थी) जीवों के पुण्य की प्रेरणा से 125 जैसा कि हरिवंश पुराण में कहा गया है, यह दिव्यध्वनि चारों पुरुषार्थों का फल देने वाली है:
SR No.007130
Book TitleJain Dharm Sar Sandesh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKashinath Upadhyay
PublisherRadhaswami Satsang Byas
Publication Year2010
Total Pages394
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size21 MB
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