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________________ साधना पथ तत् सत् संपादकीय गुरुभकित, दृढ निष्ठा और समर्पण की जीवन्त प्रतिमा अर्थात् ब्र. श्री गोवर्धनदासजी। श्रीमद् राजचन्द्र आश्रम, अगास के प्राण एवं प्रणेता प.पू.श्री लघुराजस्वामी (प्रभुश्रीजी) के चरणों की सेवा के माध्यम से परमकृपालुदेव श्रीमद् राजचंद्रजी के प्रति सर्वापर्णभाव रखकर आत्मकल्याण करनेवाले और कायोत्सर्गपूर्वक उत्तम समाधिमरण साधनेवाले महान आत्मा हैं - पू. ब्र. श्री गोवर्धनदासजी। प. पू. प्रभुश्रीजी उनको 'ब्रह्मचारीजी' जैसे पवित्र आचारसूचक नाम से संबोधित करते थे। अगास आश्रम के संत प. पू. प्रभुश्रीजी के प्रथमवार के ही दर्शनसमागम से उनके जीवन में पूर्वभवों के उत्तम संस्कार जाग उठे और संत के सानिध्य में उनकी आत्मा पहुँच गई। संत-सानिध्य के बेहद सामर्थ्य का उनकी पवित्र आत्मा ने अनुभव किया और सेवा-सद्गुण-साधना के माध्यम से मनुष्यभव सफल किया। सुपात्र-संस्कारी आत्मा को ज्ञानी का प्रत्यक्ष समागम कितना लाभदायी होता है, वह तो उन की खुद की आत्मा ही जान सकती है, फिर भी उन के जीवन के अनुभव और वचन दूसरों को भी उतने ही उपकारी हो सकते हैं। पू. ब्र.जीने बी.ए. जैसी उच्च डिग्री उस जमाने में अर्जित की थी, आणंद की स्कुल में अध्यापन कार्य भी किया था और आचार्यपद तक पहुँचे थे; फिर भी संत-समागम से उनकी आत्मा में अजब का रूपान्तरण हुआ, संसारी-गृहस्थ जीवन का सहज त्याग हुआ और उनकी आत्मा एक समर्पित साधक बन गई। पू. ब्र.जी में गुरुभकित, विनय-विवेक-वैराग्यभाव एवं आत्मअनुभव की लगनी जैसे उत्तम सद्गुण भरे पड़े थे। उनका शास्त्र-अभ्यास और क्षयोपशम भी अद्भुत था। उनमें श्रुतज्ञान और गुरुभकित का बेजोड़
SR No.007129
Book TitleSadhna Path
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPrakash D Shah, Harshpriyashreeji
PublisherShrimad Rajchandra Nijabhyas Mandap
Publication Year2005
Total Pages228
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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