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________________ साधना पथ तत् सत् प्रकाशकीय हमारा परम सौभाग्य है कि सर्वज्ञ वीतराग प्रणीत मोक्षमार्ग का जिर्णोद्धार वर्तमानकाल में परम ज्ञानी श्रीमद् राजचन्द्रजी ने किया है। उन्हीं के पदचिन्हो पर चलकर आत्म-साधना का मार्ग श्रीमद् लघुराजस्वामी (पू. प्रभुश्रीजी) जैसे समर्थ शिष्योंने प्रकाशित किया है। पू. प्रभुश्रीजी के आज्ञांकित शिष्य पू. ब्र. गोवर्धनदासजी ने भी ज्ञान-ध्यान-वैराग्य की प्रबल आराधना करके हमारे लिए ज्ञानी की भक्ति का और साधना का पथ सरल-सुबोध और भावपूर्ण शब्दोमें समझाया है। सत्पुरुष की भक्ति कैसे करें? और सत्पुरुष के बताये मार्ग पर कैसे चलें? इसका आबेहूब वर्णन पू. ब्रह्मचारीजी ने अपने जीवन एवं वचन के माध्यम से अलौकिक रीति से दर्शाया है। ऐसे साधक-धर्मात्माके वचनों को हिन्दी भाषामें अनुवादित करके प्रस्तुत ग्रन्थका प्रकाशन किया गया है। हिन्दी भाषी प्रान्त के साधक-मुमुक्ष जीवों को साधना में उपयोगी जानकर प्रस्तुत ग्रन्थ का प्रकाशन आचार्य भगवंत श्री जनकचन्द्रसूरीजी महाराज एवं श्री धर्मरत्नजी महाराज की प्ररेणा से किया गया है। इस पुनीत प्रेरणा को क्रियान्वित करने का श्रेय आदरणीय धर्मस्नेही सुश्री नीलम राजेन्द्र जैन (लुधियाना) के अर्थ सहयोग को जाता है। _ 'साधना पथ' का हिन्दी अनुवाद, आचार्यश्री की प्रेरणा से, पंजाबी साध्वी श्री हर्षप्रियाश्रीजी ने किया है। इस ग्रन्थ का पूरा संकलनसंपादन प्रभुकृपा से आत्मार्थी श्री प्रकाशभाई डी. शाह (अमदावाद) ने अपने आत्महितार्थ किया है। आचार्य श्री की प्रेरणा से उन्होने इस ग्रन्थ के सर्वांग-सुंदर प्रकाशन में निःस्वार्थ भाव से पूरा सहयोग देकर जिनवाणी की उत्तम सेवा की है, जो परम अनुमोदनीय है।
SR No.007129
Book TitleSadhna Path
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPrakash D Shah, Harshpriyashreeji
PublisherShrimad Rajchandra Nijabhyas Mandap
Publication Year2005
Total Pages228
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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