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________________ साधना पथ (४०) बो.भा.-१ : पृ.-११८ महा पुण्य के योग से यह मनुष्यभव मिला है। किसी के अकस्मात मरण को देखकर ज्ञानी विचार करता है कि इस बेचारे का मनुष्य भव निष्फल गया। किसी के मृत्यु-प्रसंग पर खेद नहीं करना चाहिए। उस समय ज्ञानी के वचनों का विचार करना चाहिए। संसार में कहीं भी सुख नहीं; सुख दिखता है, वह भ्रान्ति है। इस संसार में मृत्यु समय कोई बचा नहीं सकता। ईन्द्र की मृत्यु हो, तब बहुत देवता पास ही खड़े होते हैं, पर कोई बचा नहीं सकता, तो फिर मनुष्य तो क्या कर सकता है? इस अनित्य संसार में सुख पाने की कल्पना में जो मोक्ष का साधन प्राप्त हुआ है, उसे व्यर्थ न जाने दें। पुनः जन्म न हो, ऐसा करें। चाहे कितना भी मिथ्या प्रयत्न करे पर अन्त में सब छोड़ कर जाना ही पड़ता है। साथ कुछ नहीं आता। मनुष्य भव इस संसार की मायाजाल में व्यर्थ गँवाना नहीं। वैराग्य बढ़े तो मुक्त हो। आसक्ति छूटे तो वैराग्य हो। वैराग्य ही कर्म से मुक्ति का उपाय है। चाहे कैसे भी पाप या पुण्य का उदय हो तथापि आसक्ति न करें तो मोक्ष होगा, ऐसा भगवान ने कहा है। जिसे वैराग्य हो, वह संसार से छूटता है। दूसरों को उपदेश देने में जीव बहुत होशियार है, पर अपने प्रसंग पर पता लगता है। सगर चक्रवर्ती के साठ हजार पुत्रों को दृष्टिविष सर्पने मार डाला, तब ईन्द्र ब्राह्मण का रूप लेकर नगर में आया। अपने बेटे का शब लेकर फिरने लगा। फिर राजदरबार में आया, सगर चक्रवर्ती ने कहा "हे विप्र! आप रोते क्यों हो? सब का मरण कभी न कभी तो होने ही वाला है। आप विद्वान हो, अतः धैर्य रखना चाहिए।" ब्राह्मण ने कहा “आपके पुत्र यदि मर गए हों तो क्या आप रुलोगे नहीं? धीरज रखो?" तब राजाने कहा :- "हाँ !" ब्राह्मण बोला :- “आपके साठ हजार पुत्र अष्टापद पर्वत पर तीर्थ की रक्षा के लिए गंगा नदी को लाए। नदी का पानी, नीचे भवनपति देवों के भवनों में भर गया। नागकुमार देवता वहाँ भयंकर रुष्ट हो गए। उन्होंने बाहर आकर दृष्टिविष से उन सब को मार डाला है।" इतना सुनते ही राजा मूर्छा खाकर पृथ्वी पर गिर पड़ा।
SR No.007129
Book TitleSadhna Path
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPrakash D Shah, Harshpriyashreeji
PublisherShrimad Rajchandra Nijabhyas Mandap
Publication Year2005
Total Pages228
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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