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________________ साधना पथ ४१ मिथ्यात्व गाढ़ होता है। ज्ञानी पुरुष सबसे उँचे गए हैं। जीव का कल्याण कैसे हो, वह ज्ञानी जानते हैं । ज्ञानी की आज्ञा में रहना, कल्याण है। मार्ग जिसे मिला है, उसे पूछना । पाप के मार्ग से तो दुःख ही निकलेगा, क्योंकी जो अपना नहीं, उसे अपना मानता है। अपने दोष देखकर टाले तो कल्याण होगा। आत्म हित कहीं से भी होता हो तो करना । महा पुण्योदय से जीव को सत्संग मिलता है। सत्संग से जीव को बहुत लाभ मिलता है। सत्संग में आत्मा की बात सुनने को मिले। सारे जगत में कहीं भी सुख नहीं, वहाँ यह जीव सुख मानता है । जीव की दृष्टि बाह्य है, अतः इसे जो पर वस्तु मिले तो पूरी जिंदगी उसके लिए गँवा देता है। मनुष्य भव में जो करना हो, कर सकते हैं। मनुष्यभव से मोक्ष होता है, अतः वह उत्तम है। जागे तब से सबेरा । निरंतर पुरुषार्थ जरूरी है। लक्ष्य बदलने की जरूरत है। अनन्त काल से जो नहीं किया, वह सत् वस्तु प्राप्त करनी है। चलते-फिरते, प्रत्येक काम करते, वैराग्य रखना है। समय - समय पर कर्म का कारखाना चल रहा है, अतः जागृति की बहुत जरूरत है। सत्संग में रहने की जरूरत है। आत्मा की जागृति रखने के लिए रात-दिन ज्ञानी पुरुष के वचनों में वृत्ति रहे, वैसा करना । सत्संग तो पुण्य से ही मिलता है। जो सदाचार हो तो बोध ग्रहण होगा और आत्मसात हो । 'मोक्षमाला' मोक्ष के बीज समान है। धर्म में ढील नहीं करना। कौन जाने कब देह छूट जाएँ ? मोक्ष के लिए मनुष्य भव है। मनुष्य भव में जीव सत्संग कर सकता है, अच्छी भावना कर सकता है, अपने स्वरूप को समझ सकता है। " प्रमाद के कारण आत्मा अपने स्वरूप को भूल जाता है ।" ( श्री. रा.प. २५) कर्म से छूटने के लिए मनुष्य भव मिला है। समझे तो मनुष्य कहलाएँ। जीव सो रहा है, उसे जगाने के लिए ज्ञानी का बोध है। आत्म स्वरूप को प्राप्त करने के लिए सब करना है। ज्ञानी की आज्ञापालन हो तो बहुत लाभ होता है। प्रमाद में जीव देह रूप बन जाता है। आत्मा उपयोग स्वरूप है। जैसा उपयोग, वैसा आत्मा ।
SR No.007129
Book TitleSadhna Path
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPrakash D Shah, Harshpriyashreeji
PublisherShrimad Rajchandra Nijabhyas Mandap
Publication Year2005
Total Pages228
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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