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________________ (30) ३० साधना पथ ही खोजें, परंतु विश्वास नहीं है। प्रेम आए बिना विश्वास नहीं होता। प्रभुश्रीजी ने पूरी जिंदगी यही उपदेश दिया कि भक्ति करो, कृपालदेव पर प्रेम लाओ। तुम शास्त्र पढ़ो, ऐसा नहीं कहा। प्रेम आए तो रुचि जागे और फिर आज्ञा पालन भी हो । सत्शास्त्रादि साधन हैं, पर उनमें रुक जाना नहीं, जब सत्संग का अभाव हो, तब जीव की रुचि ताजी रहे, इसके लिए है। आज्ञा ही जीवन है । सत्पुरुष का एक-एक वचन लेकर उसके लिए झुरणा होगी, तब काम होगा । अनादि काल से परिभ्रमण हो रहा है, वह कैसे मिटे ? मुमुक्षुता की कमी है। "सत्पुरुष में ही परमेश्वरबुद्धि, इसे ज्ञानीयों ने परम धर्म कहा है ।" ( श्री. रा. प. २५४) जब प्रेम आएगा तब सब होगा । " पर प्रेम प्रवाह बढ़े प्रभु से, सब आगम भेद सुउर बसें । " सत्पुरुष और सत्संग, दोनों चाहिए । कृपालुदेवने वचनामृत में जगह जगह सत्पुरुष और सत्संग, दोनों को गाया है। शरीर के माध्यमसे जीव कर्म बाँधता है, उसी के कारण सब संसार हैं। जितना देह पर वैराग्य हो उतना मोक्ष तरफ मुड़ेगा। पाँच इन्द्रियों के विषयों की लोलुपता मिटे तो कषाय मिटे, क्योंकि इन्द्रियों के कारण कषाय उत्पन्न होते हैं। इन्द्रियों के विषय पर से भाव उठ जाएँ तो कषाय किस पर करें ? (३०) बो. भा. - १ : पृ. ५३ शुद्धभाव यदि न रहता हो तो शुद्धभाव ही मुझे करना है, ऐसा अंतर में लक्ष्य रखकर शुभभाव में प्रवृत्ति करें तो धीरे-धीरे शुद्धभाव की प्राप्ति होती है। मुमुक्षु :- शुद्धभाव का जीव को पता नहीं तो लक्ष्य कैसे करें ? पूज्यश्री :- ज्ञानीपुरुष के अवलंबन से शुद्धभाव का लक्ष्य रखा जाता है।ज्ञानी का कथन सच्चा है, मैं तो कुछ जानता नहीं, ऐसा भाव रखें तो शुद्धभाव का लक्ष्य रहता है। शुद्धभाव के लिए जो शुभभाव किया
SR No.007129
Book TitleSadhna Path
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPrakash D Shah, Harshpriyashreeji
PublisherShrimad Rajchandra Nijabhyas Mandap
Publication Year2005
Total Pages228
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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