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________________ साधना पथ इस तरह रुचि रह जाए तो बहुत पुरुषार्थ करने पर भी संसार का संसार रह जाता है। इसके लिए रुचि बदलना कि मुझे कुछ नहीं चाहिए और मेरा कुछ नहीं है। मुझे तो छुटना है। फिर ज्ञानी की आज्ञा का पालन करें तो जीव अवश्य छुट सकता है, विचार करके रुचि बदलकर, फिर पुरुषार्थ सतत जागृत उपयोग से करने की आवश्यकता है। •. - जीवन नियमित रखना, जिससे सहजता से समय का यथार्थ उपयोग हो जाता है। खास समय में खास काम कर लें तो प्रमाद नहीं होता। नियमित नहीं रहने से समय व्यर्थ जाता है। मन जो खाली रहें तो एक पल में कुछ का कुछ कर बैठता है। एक पल खराब विचार में चढ़ जाएँ तो फिर घाटे का हिसाब नहीं रहता। जीवन का समय कैसे बिताना? यह सोचकर काम करे तो अच्छा हो। जीवन में हर वक्त समान नहीं बितता। कभी निरोगी है तो कभी रोगी है। कभी इष्ट वस्तु की प्राप्ति हो, तो कभी अनिष्ट भी मिल जाता है। अतः पहले से ही ऐसी आदत डाल लें कि चाहें कि जो भी आएँ, सब कर्म हैं। मुझे तो आत्मा तरफ दृष्टि रखनी हैं। ये तो सब जानेके लिए आएँ हैं , इनमें इष्ट-अनिष्ट क्या करना? (२५) बो.भा.-१ : पृ.-४१ कोई पुस्तक पढ़ी, समझ न आई हो तो पुनः पढ़ना। तब विचार करना कि यह पुस्तक अपने लिए पढ़ रहा हूँ, इसमें त्याग करने जैसा क्या है? ग्राह्य क्या है? ____ जब यहाँ आश्रम में “गोम्मटसार" नामक पुस्तक का वांचन चालू था, तब सभी को समझने में कठिन लगता। अतः पुस्तक पढ़ते "वीतराग का कहा हुआ परम शांत रसमय धर्म पूर्ण सत्य है।" ( श्री.रा.प.५०५) यह पत्र बोलने की प्रभुश्रीजी ने आज्ञा की थी। . वीतरागने जो कहा है, वह सत्य ही कहा है। मेरी समझ में नहीं आता। ऐसी यदि श्रद्धा रखकर श्रवण करें तो आगे जाते समझ आएंगी। जीव के अनधिकारीत्व के कारण ध्यान में नहीं आता।
SR No.007129
Book TitleSadhna Path
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPrakash D Shah, Harshpriyashreeji
PublisherShrimad Rajchandra Nijabhyas Mandap
Publication Year2005
Total Pages228
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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