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________________ ニャン साधना पथ उनके पास काफी समय बचता था। यानी फुर्सद में, वे क्या करते होगें ? कुछ भी काम नहीं, किसी से बोलना नहीं, खाना नहीं। पुस्तक भी पढ़ना नहीं, और नग्न ही विचरते थे । अतः कपड़ों की भी खटपट ( झंझट ) नहीं । किसी को बोध भी नहीं देते। तब इतना सारा समय उन्होंने क्या किया ? तेईस तीर्थंकर हुए, उनकी आयु ज्यादा थी और कर्म कम थे। जब कि उन तेईस तीर्थंकर के जितने कर्म थे, उतने एक महावीर भगवान के कर्म शेष थे और आयु बहुत ही अल्प थी । अतः काम ज्यादा और समय थोड़ा था। इससे उन्होंने केवल अपने कर्म खपाने में ही सतत उपयोग दिया। साढ़े बारह वर्ष पर्यन्त मौन और जागृत रहकर घाति कर्म भस्मीभूत करके केवलज्ञान प्रगट किया। अपने सिर तो कितने सारे कर्म होगें, कितना सारा पुरुषार्थ करना पड़ेगा और कितना कर रहे हैं? यह सोचकर पुरुषार्थ उग्र रूप से करना चाहिए। मुमुक्षु :- इतने सारे कर्म सिर पर हैं, इससे तो घबराहट होने लग जाएँ। ये कर्म का कैसे बंध न हो ? पूज्यश्री :- कर्म बंध के पाँच कारण हैं:- मिथ्यात्व, अविरति, प्रमाद, कषाय और योग । मिथ्यात्व अर्थात् उल्टी समझ । वह सत्पुरुष के बोध से मिटती है। आत्मा निर्विकारी बननी चाहिए। मुख्य करने योग्य क्या है? भावों की खोज । मेरे भाव कैसे हो रहे हैं? कैसे करने हैं? इसी तरह समय समय अपने भाव को टटोलने का पुरुषार्थ, जीव जो करें, तो अवश्य कल्याण हो । बो. भा. - १ : पृ. ३६ (२३) पूज्यश्री :- समभाव कैसे आएँ ? " समज सार संसार में, समजु टाले दोष; समज समज कर जीव ही, गया अनंता मोक्ष।” (बृहद् आलोचना ) समज आएँ तो समभाव सहजता से रहें । समज कैसी चाहिए? सीधी। यह देह, वह ही मैं, यह स्त्री, यह पुरुष, यह पशु, यह घर, यह धन, इस
SR No.007129
Book TitleSadhna Path
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPrakash D Shah, Harshpriyashreeji
PublisherShrimad Rajchandra Nijabhyas Mandap
Publication Year2005
Total Pages228
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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