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________________ १७ साधना पथ कर्तव्यरूप धर्म की उपासना करना योग्य है।' (श्री.रा.प. ३७५) सुख नहीं, वहाँ सुख खोजता है, तो कहाँ से सुखी हो? वैराग्य भाव से संसार दुःखरूप लगे। वस्तु-स्वभाव को पहचानकर, सत्य समझे तो दुःख का कारण न रहे। अतः दुःख नाश का उपाय सच्ची समझ है। जीव व्यर्थ में अहं-ममत्व करके दुःखों की वृद्धि कर लेता है। (१५) बो.भा.-१ : पृ.-२८ वृत्ति स्थिर होने के लिए स्वाध्याय करना। शरीर प्रकृति नरम हो, तब ‘पंचास्तिकाय' का अध्ययन हो तो वृत्ति स्थिर होकर आनन्द आता है। वृत्ति बाहर जाते देर नहीं लगती। वापिस लाना बहुत कठिन हो जाता है। अतः उसका निरंतर उपयोग रखना। यह जीव प्रमादी हो गया है। खड़ा हो तो बैठ जाता है। बैठा हो तो लेट जाता है। अतः जागृति रखना। भावना का फल परिणाम है, कर्मोके नाश का साधन भाव है। उल्लसित भाव होने से बहुत कर्म नाश हो सकते हैं। पूज्य प्रभुश्रीजी भाव उपर दृष्टान्त देते थे। “प्रेममें कोई प्रतिज्ञा (नियम), बाधा नहीं पहुँचाती।" ___ पांचसौ श्लोक का स्वाध्याय हो, तो एक उपवास का फल मिलता है। ‘आत्मसिद्धि' चार बार बोली जाए, तो उपवास जितना तप हो जाता है। वैराग्य दशा गुप्त रखी नहीं जा सकती। एक बच्चा भी यदि उसे अंगूलि देकर वापिस खींच लें तो वह समझ जाता है, तो घर के व्यक्ति कैसे न जानें? अवकाश होते ही घर में भी वाँचन करना और सवको समझाना। परमकृपालुदेव ने व्रत लिया था कि संसार में चाहे कैसे भी क्लेश के कारण आ पड़ें, तथापि असमाधि होने न देना; उस व्रत का जीवनपर्यंत पालन किया। संयम अर्थात् सर्व भाव से विराम पाना। ‘स्मरण' अर्थात् विस्मरण न करना। एक एक पल भी जिसको उपयोग में लेनी हो, उसके लिए स्मरण है। मन्त्र का अधिक अभ्यास रखना। परम कृपालुदेव के चित्रपट का दर्शन करने से उनके आत्मस्वरूप का लक्ष्य होता है।
SR No.007129
Book TitleSadhna Path
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPrakash D Shah, Harshpriyashreeji
PublisherShrimad Rajchandra Nijabhyas Mandap
Publication Year2005
Total Pages228
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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