SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 16
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ साधना पथ पर वस्तु का जीव को मोह, दुःखदायी ही है। ज्ञानी पुरुषों ने तो एक आत्मा के अलावा सब पुद्गल ही देखा है। आज जो रत्न दीखता हो तो वह भी बाद में विष्टारूप हो जाता है। शरीर की फोटो लें तो वह अच्छी दिखती है, पर एक्सरे से फोटो ली हो तो हड्डियाँ ही दिखें और उस में मोह नहीं होता है। वैसी ही ज्ञानीपुरुषों की दृष्टि होती है। उन्हें मोह होता ही नहीं, क्योंकि वस्तु का स्वरूप यथातथ्य देखा है। (३) बो.भा.-१ : पृ.-१३ स्त्रियों पर कीसी भी प्रकारका विश्वास रखना नहीं चाहिए। स्त्री का शरीर महा अशुचिमय है। उसमें मोह करने जैसा कुछ भी नहीं है। मानव को उसके मुख, बाल और शरीर देखकर मोह होता है, परन्तु उसमें रमणीयता न मानकर, चमड़ी के अन्दर छिपे अशुचिमय पदार्थों का विचार करना। बालों में क्या सुंदरता हैं? उसके मूल को देखें तो ग्लानि होती है। मुख उपर से सुंदर दिखता है, पर सुगंधीदार पदार्थ खाकर मुख को सुगंधमय रखने पर भी मुँह दुर्गन्धमय होता है। शरीर, चमार के घर की मशक जैसा है, अन्दर दुर्गन्धी पदार्थ भरे हैं। योनिस्थान है, वह दुर्गंधमय रस, लहू झरने का स्थान है। शरीर में से भी पसीना निकलता रहता है। स्त्री के नेत्रों में शीतलता मानी जाती है, परन्तु उसके कटाक्ष मनुष्य को अग्नि की ज्वाला की तरह जलानेवाले हैं। उसका बोलना मधुर लगता है, परन्तु वह विष तुल्य है। उसका समागम मृत्यु समान दुःखदायी है। महात्मा पुरुष, जिन्होंने समकित प्राप्त किया है और निरंतर आत्म-स्मरण में मग्न रहते हैं उन्हें भी स्त्री का संसर्ग महा अनर्थकारक हैं, महा प्रयत्न से प्राप्त किया आत्मधन क्षण मात्र में नष्ट कर सकते हैं। सत्पुरुषों द्वारा मिले महामंत्र का जो निशदिन रटण करता रहता है, उसे भी स्त्री का संसर्ग, उस मंत्र को क्षण मात्र में विलय करके जन्मांतर में भी उस मंत्र का उदय न होने दे।
SR No.007129
Book TitleSadhna Path
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPrakash D Shah, Harshpriyashreeji
PublisherShrimad Rajchandra Nijabhyas Mandap
Publication Year2005
Total Pages228
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy