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________________ साधना पथ १३५ . राग-द्वेष के कारण सारा संसार है। ज्ञानी के वचन इस की कमर तोड़ सकते हैं। यह लाठी लगे तो फिर संसार बढ़ाने की रुचि न रहे। ज्ञानी के वचन सत्य लगे हों तो फिर संसार में दौड़े? संसार में बड़े बने तो संसार बढ़ता है। कमर तूट गई हो तो फिर संसार में दौड़ की इच्छा न रहे। फिर यदि पूर्व कर्म के कारण करना पड़े तो वेठ जैसा करे। ज्ञानी के वचन अधिक परिणमें हों तो संसार न रहे। वचन की असर के अनुसार संसारी बल कम होता है। चारों गति में दुःख है। ज्ञानीपुरुष को देखे तो आत्मा को देखे। आत्मा कैसी बलवान है! उसे जानने के लिए ज्ञानी का अवलंबन, साधनरूप है। ज्ञानी को आत्मदृष्टि से देखे तो जगत को भी आत्मदृष्टि से देखे। ज्ञानी को देहदृष्टि से देखे तो जगत को भी देहदृष्टि से देखे। ज्ञानी के वचन सुने हों, तो पुद्गल, पुद्गल लगे। आत्मा सुन्दर वस्तु है। देह की सुन्दरता आत्मा के कारण है, अन्यथा मुर्दा भयंकर लगे। देह में अपूर्व वस्तु आत्मा है। उसे देखने के बदले मल-मूत्र हाङ-माँस को देखता है। आत्मा के कारण ही सब पवित्र है। आत्मा देखने की दृष्टि आए तो ज्ञानी की भी पहचान हो। ज्ञानी की भक्ति से ज्ञानी की पहचान होती है। अपूर्व गुण दृष्टिगोचर हो कर आत्मबोध हो, वह भक्ति का फल है। 'आत्मा देहादि से भिन्न है।' यह समझने के लिए वचन हैं। जो दिखता है, वह सब नाशवंत है। ज्ञानी के वचन सुनकर, 'मैं देह से भिन्न हूँ' यों करना है। दृष्टि बदले तो देह को देह और आत्मा को आत्मारूप देखे। इसे अन्तर-वैराग्य कहा है। अचेतन भींत जैसी देह है। ___ धन तो देह से भी भिन्न है। मिट्टी के ढ़ेफे समान शरीर है। देह पर मोह है, अतः धनादि में मोह होता है। मैं देह नहीं, ऐसा लगे, तो सच्चा वैराग्य हो। धन आत्मा को मलिन करनेवाला है। परिग्रह, संसार के साथ कड़ी जोड़नेवाला है, पाप है। धन, ऊँची जाति का कंकर है। .. देवकरणस्वामी को एक बार कृपालुदेव ने पूछा, 'आप व्याख्यान करते हो तो कितने व्यक्ति आते हैं?' देवकरणजी बोले, 'हजारेक।'
SR No.007129
Book TitleSadhna Path
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPrakash D Shah, Harshpriyashreeji
PublisherShrimad Rajchandra Nijabhyas Mandap
Publication Year2005
Total Pages228
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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