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________________ (१२० साधना पथ आसक्ति कारणरूप है। उसके कारण पंचम काल कहा जाता है। पाँचों इन्द्रियों के विषय बिना इस काल के जीवों को अन्य कुछ भी नहीं रुचता; धर्म के साधन अच्छे नहीं लगते। जो अन्तरदृष्टि हो तो फिर बाहर की वस्तु इसे अच्छी न लगे। रूप आदि पाँच इन्द्रियों के विषयों का अभ्यास बहुत काल से है। अतः अतीन्द्रिय सुख की श्रद्धा नहीं होती। सिद्ध को क्या सुख होगा? उसका ख्याल भी नहीं आता। संसारी वस्तु मिलते ही उसमें लीन हो जाता है, अपना सुख भूल जाता है, इससे व्याकुलता है और न मिले उस की भी व्याकुलता है। साता ही अंतरदाह है और असाता ही बाह्यांतर दाह है। अलः (साता-असाता) दोनों में जीव व्याकुल रहता है। जीव के परिणाम स्थिर नहीं रहते। राग-द्वेष होते रहते हैं। वस्तुतः यही अंतरदाह है। ज्यों ज्यों जीव की शारीरिक शक्ति कम होती है, भोग की सामग्री कम होती है, त्यों त्यों जीव की व्याकुलता बढ़ती है। आसक्ति अधिक होती है। इस कलिकाल में पाँचों इन्द्रियों के विषयों का सुख अल्प मात्र है। आयुष्य अल्प है। पहले तो इन्द्रियों के सुख के साधन बहुत थे तथापि व्याकुलता इतनी ज्यादा न थी। देखत भूलीमें सारा संसार पड़ा है। इस काल में सम्यक् समझवाले जीव कम हैं। पाँच इन्द्रियों के विषयों की व्याकुलता वाले जीव बहुत हैं। कर्म बांधने का कारण मन है। पशुओं का अपने जैसा विकास नहीं, अतः उन्हें कर्म बंध कम होता है। ___अब दूसरे प्रकार के जीव जिन्हें परमार्थ में विह्वलता नहीं है। समजु हैं, उन्हें चित्त में विक्षेप नहीं होता। आत्मा का हित हो, इस तरह रहते हैं। अन्य का संग होनेसे यह भूल नहीं जाते। उन्हें अन्य में प्रीति नहीं होती। जगत सारा चाहे सुवर्णमय बन जाएँ तो भी उन्हें तृण लगता है। ऐसा पुरुष राम सदृश वैराग्यवाला है। ऐसे जीव अधिक हों तो कलिकाल न कहा जाए। अंश में भी ऐसे गुणधारक जीव थोड़े भी दिखते नहीं। अतः खेद और आश्चर्य होता है कि यह काल कैसा आया है? अच्छे व्यक्ति मिलते ही नहीं।
SR No.007129
Book TitleSadhna Path
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPrakash D Shah, Harshpriyashreeji
PublisherShrimad Rajchandra Nijabhyas Mandap
Publication Year2005
Total Pages228
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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