SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 130
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ साधना पथ (११७ अनादि की आदत में खिंचता जाए। छूटने के लक्ष्य से करे तो मन टिकता है। सामायिक करने बैठे हो और मन अन्यत्र घूमता रहता है। चौबीस घण्टे जो भी करते हो वह ही सामायिक के समय भी हाजिर रहता है। दूसरा कहाँ से आये? अब कोई भी साधन करो पर सत्पुरुष को भूलना नहीं। उनके उपकार, करुणा आदि याद करके साधन करें। उपदेश छाया(५) में हैं कि 'स्वभाव में रहना, विभाव से छूटना।' यह न होता हो तो क्या करना? सत्पुरुष में चित्त रखना, और जगत को भूल जाना। श्री.रा.प.-३०१ (१०९) बो.भा.-२ : पृ.-७२ ज्ञानी को यह दृढ़ कराना है कि संसार बंधनरूप है। उस से बचने के लिए इतना करना है। आत्मा को पहले देखो। देखने वाला आत्मा है। आत्मा है वह प्रथम पद है, वह भूल न जाना। सुख दुःख आएँ तो योग्य ही मानना, ऐसा हो तो बुरा, ऐसा न हो तो अच्छा, ऐसे मत करना। पूर्व में जो किया था वही आया है। आत्म विस्मरण नहीं होना चाहिए। जगत आत्मा रूप माना जाएँ, तो आत्मा का विस्मरण नहीं होता। पहले आत्मा, है वह हो तभी सब पता लगता है। 'घट-पट आदि जाण तुं, तेथी तेने मान; जाणनार ते मान नहि, कहिए केव॒ ज्ञान?॥ ५५ आ.सि. आत्मा न हो तो मुर्दा है। ज्ञायक-ज्ञाता-देखनेवाला आत्मा प्रथम है। आत्मा-ज्ञायक है तो ज्ञेय का पता लगता है। संसार में जीवों को दोष पहले दिखते हैं। किसी के भी दोष न दिखें, तभी संसार में रहना, अन्यथा जंगल में चले जाना। अपने में कोई गुण हो तो जीव उसे गाता फिरता है। मानो गुण प्रगट हुआ ही नहीं, इस तरह संसार में रहे। अपने दोष देखे तो मुमुक्षु बने। इन दोषों से मुक्त होनेका प्रयत्न करें। श्री.रा.प.-३३० (११०) बो.भा.-२ : पृ.-७८ बहुत समय के बोध के बाद जीव को सम्यकदर्शन प्रगट होता है। सम्यक्दर्शन, केवलज्ञान का बीज है। यह निश्चय सम्यक्त्व है, उसमें
SR No.007129
Book TitleSadhna Path
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPrakash D Shah, Harshpriyashreeji
PublisherShrimad Rajchandra Nijabhyas Mandap
Publication Year2005
Total Pages228
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy