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________________ साधना पथ संसार के सब कारणों का त्याग करे तब होता है। त्याग का अभिमान नहीं करना, बकरा निकालते ऊँट अन्दर नहीं आना चाहिए। पूर्व प्रारब्धानुसार प्रवर्तन करते हुए खुश नहीं होना चाहिए। एक मोक्ष का लक्ष्य रख कर मोह के काम करने पड़े तो उसमें बेचैनी महसूस हो। क्योंकि सच्चे को सच्चा जाना है। तीव्र मुमुक्षुता अर्थात् क्षण-क्षण अनन्य प्रेम से मोक्ष के मार्ग में प्रवृत्ति करना। तीव्र मुमुक्षुता वाले जीव विरले होते हैं। अपने दोष देखें तो मुमुक्षुता आती है। अपने दोष निकालने के लिए कटाक्षदृष्टि से देखें, यह मुमुक्षुता का कारण है। जीव अपनी सार संभाल लेना भूल गया है। दोष देख कर पश्चात्ताप करे तो मुमुक्षुता आती है। श्री.रा.प.-२८२ (१०७) बो.भा.-२ : पृ.-७० सत्संग के योग से जीव को शान्ति मिलती है। आत्मस्वरूप जानने के बाद उस में रस आता है। तन्मयता से भक्तिरस गाए तो शान्ति मिलती है। इस जगत का स्वरूप विचारे तो वैराग्य हो सकता है। जगत में कहीं भी सुख नहीं। अखण्डता से हरिरस गाए बिना शान्ति नहीं आती। सम्यकदर्शन होने के बाद मोक्ष की रुचि होती है। फिर अन्य कुछ अच्छा नहीं लगता। __व्यासजी को नारदऋषि मिले तब व्यासजी ने कहा कि मैं ने बहुत शास्त्र लिखे हैं, पर शांति नहीं हुई। नारदऋषि ने कहा कि भक्ति में लीन हो जाओ। तब से व्यासजी ने भक्ति के बारे में लिखना शुरु किया। - प्रश्नः- भक्ति जागृत क्यों नहीं होती? पूज्यश्रीः- जीव को दूसरी भक्ति संसार की है। सुबह से शाम तक देह और कुटुम्ब की भक्ति करना जीव को अच्छा लगता है। जीव को संसार में अभी प्रेम है। संसार जहर जैसा लगे तब भक्ति जागती है। फिर संसार के काम अच्छे नहीं लगते। भक्ति न होने का दुःख है। भक्ति हो तो मुक्ति सहजता से आ जाए। 'पर प्रेम प्रवाह बढ़े प्रभुसे, सब आगम भेद सुउर बसें; वह केवल को बीज ज्ञानी कहे, निज को अनुभव बतलाई दिए।' जा जाए।
SR No.007129
Book TitleSadhna Path
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPrakash D Shah, Harshpriyashreeji
PublisherShrimad Rajchandra Nijabhyas Mandap
Publication Year2005
Total Pages228
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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