SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 120
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ साधना पथ समागम साधु का हो या श्रावक का, वैराग्य की बात हो तो सब को लाभ होता है। वैराग्य की बात अन्य दर्शन वालों को भी अच्छी लगती है। प्रश्नः- वैतालीय अध्ययन किस में है? पूज्यश्रीः- सूत्रकृतांग में दूसरा अध्ययन है। मनुष्यभव दुर्लभ है। पुनः पुनः मिलता नहीं, अतः प्रमाद छोड़कर मोक्षके लिए तुरंत पुरुषार्थ करना चाहिए, क्योंकी आयुष्य अनियत है। शरीर आदि सब असत्य है। ऐसी ऐसी वैराग्यकी बातें इसमें आती हैं। __किसी एक समय, प्रभुश्रीजी गृहस्थ को सत्पुरुष मानते हैं, ऐसी प्रसिद्धि हुई। फिर एक बड़े साधु प्रभुश्रीजी को मिले, तब प्रभुश्रीजी ने कृपालुदेव के पत्र उन्हें दिखाएँ। उन्हें लगा कि ये तो अच्छी बातें हैं। यह सब करने योग्य है। इनको लिखने वाला कोई ज्ञानी है, ऐसा लगा। गौतमस्वामी सर्वज्ञ जैसे कहलाते, पर भगवान मिलने से पूर्व उन्हें मन में ऐसा संदेह रहता कि आत्मा है या नहीं? पुस्तकें पढ़नी अच्छी लगती हैं पर ये पाँच इन्द्रियों के विषयों को छोड़ना बहुत कठिन है; इनसे छूटो और स्मरणमय बन जाओ। मैं कुछ नहीं जानता, यह करना है। अनादि काल से जीव जो कर रहा है, वह स्वच्छंद है। अनादि से पाँच इन्द्रियों के विषयों में प्रवर्तता है, वह सब स्वच्छंद है। 'रोके जीव स्वच्छंद तो, पामे अवश्य मोक्षा' जीव जो स्वच्छंद छोड़े तो मोक्ष हो जाएँ। लौकिक बातों में जीव डूब गया है। ये बातें भूलें तो अलौकिक बात में स्वाद आएँ। अलौकिक दृष्टि करने को कहते हैं। एक एक वस्तु में अनंत धर्म हैं, अतः सत्पुरुष खींचातानी नहीं करते। श्री.रा.प.-२११ (१०३) बो.भा.-२ : पृ.-४९ इस काल में मोक्ष के लिए अपने को क्या करने योग्य है? वह सब कृपालुदेव ने कहा है। महावीर भगवान के काल में चौदह पूर्व रचे गएँ थे। वे इस काल के जीवों को समझाना बहुत मुश्किल है। कृपालुदेव ने छोटे-छोटे पत्रों में, मोक्ष मार्ग लिखा है।
SR No.007129
Book TitleSadhna Path
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPrakash D Shah, Harshpriyashreeji
PublisherShrimad Rajchandra Nijabhyas Mandap
Publication Year2005
Total Pages228
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy