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________________ साधना पथ (८६) बो.भा.-१ : पृ.-२८८ "निश्चय राखी लक्षमा, साधन करवां सोय।" व्रत नियम सब करना है, पर निश्चय चूके तो कुछ न हो। संसार का संसार रहता है। पुरुषार्थ करोगे तो अच्छा काल, संघयण सब मिलेगा। अनादि काल से यह चला ही आ रहा है कि कोई क्रियाओं को स्थापन करता है, कोई ज्ञान को ही मोक्ष का कारण कहता है, पर चाहिए दोनों। पक्षी दो पँख हों, तभी उड़ता है, एक पँख टूट जाए तो उड़ नहीं सकता। इसी तरह अकेली क्रिया या अकेले ज्ञान से मोक्ष नहीं होता। डिग्री पाने जैसा समकित नहीं है कि अमुक पुस्तकें पढ़ने से हो जाएँ। सम्यक्दर्शन अपूर्व वस्तु है। इतनी पुस्तकें पढ़ें तो हो जाएँ, ऐसा यदि होता तो अनेक जीव समकिती हो जाते। ग्यारह अंग तक पढ़ने से भी नहीं हो पाता, ऐसा दुर्लभ है। और झटपट भी हो सकता है, पर इसके लिए बहुत तैयारी चाहिए। ज्ञानावरणीय ऐसा है कि पढ़े तो याद हो जाए, परंन्तु ज्ञानीपुरुष मुख्य दर्शनमोह को निकालने के लिए कहते हैं। दर्शनमोह जाने के लिए बोध की जरूरत है। इतने समय तक मैं ने अपना विचार किया ही नहीं? इस विचार में इसे अपना अस्तित्व भासता है। अतः पहले अपना स्वरूप भासता है। ऊपर कर्म रूपी मिट्टी जम गई है, वह उखड़ जाए तो आत्मा प्रगट हो और इसे लगे कि आत्मा ही पहला है। पहले पाप से छूटना और शुभ मार्ग में रहना। पाप के विकल्प छूट जाएँ इसके लिए व्रत नियम करने को कहा है, किन्तु इसी ही में रहना नहीं। वृत्ति ज्ञान में रखना। जब सम्पूर्ण दशा हो, तब जीव स्वयमेव परमात्मा बन जाता है। प्रभुश्री पहले आत्मा को देखते। किसी भी वस्तु को देखते ही कहते, “यह भी साक्षात् मेरी आत्मा है, देखनेवाला साक्षात् आत्मा है।" दर्शनमोह को पहले क्षय करना है। (८७) बो.भा.-१ : पृ.-३०८ मन जो दुरिच्छा करे वह इसे नहीं देना। विलास आदि को इच्छे, तो देना नहीं। मन के सामने होने से वश होगा। मन छोटे बच्चे के समान है। उसे वश रखें तो वश रहे, अन्यथा भटक जाए। विवेक की जरूरत है। . जिसका फल संसार आए, वह इच्छा रोकनी है। जिस का फल मोक्ष आए,
SR No.007129
Book TitleSadhna Path
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPrakash D Shah, Harshpriyashreeji
PublisherShrimad Rajchandra Nijabhyas Mandap
Publication Year2005
Total Pages228
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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