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________________ सम्यक्चारित्र की पूर्णता शास्त्रीय भाषा में इस नियम को "उत्पाद-व्यय-ध्रौव्ययुक्तं सत्" के रूप में कहा गया है। उत्पाद-व्यय का अर्थ है अवस्था (पर्याय) का रूपान्तर और ध्रौव्य का अर्थ है वस्तु का स्थिर रहना – यह द्रव्य का स्वभाव है। ___ द्रव्य और पर्याय के स्वरूप में यह अन्तर है कि द्रव्य त्रिकाल स्थिर है, वह बदलता नहीं है; किन्तु पर्याय क्षणिक है, वह प्रतिक्षण बदलती रहती है। पर्याय के बदलने पर भी द्रव्य का नाश नहीं होता। द्रव्य अपने स्वरूप में त्रिकाल स्थिर है, इसलिये वह दूसरे में कभी नहीं मिलता। इसे अनेकान्तस्वरूप कहा जाता है। अर्थात् वस्तु अपने स्वरूप से है और दूसरे स्वरूप की अपेक्षा से नहीं है। जैसे-लोहा, लोहे के स्वरूप की अपेक्षा से है; किन्तु वह लकड़ी के स्वरूप की अपेक्षा से नहीं है। जीव, जीवस्वरूप से है; किन्तु वह जड़स्वरूप से नहीं है। ऐसा स्वभाव है इसलिये कोई वस्तु अन्य वस्तु में नहीं मिल जाती; किन्तु सभी वस्तुयें अपने-अपने स्वरूप से भिन्न ही रहती हैं। ___ जीव, अपने वस्तुस्वरूप से स्थिर रहकर पर्याय की अपेक्षा से . बदलता रहता है; किन्तु जीव, जीवरूप में ही बदलता है। जीव की अवस्था बदलती रहती है। इसीलिये संसारदशा का नाश करके सिद्ध दशा हो सकती है। अज्ञानदशा का नाश करके ज्ञानदशा हो सकती है। __जीव नित्य है, इसलिये संसारदशा का नाश हो जाने पर भी वह मोक्षदशारूप में स्थिर बना रहता है। इसप्रकार वस्तु को द्रव्य अपेक्षा से नित्य और पर्याय की अपेक्षा से अनित्य समझना चाहिये। ___ परमाणु में भी उसकी अवस्था बदलती है; किन्तु किसी वस्तु का नाश नहीं होता। दूध इत्यादि का नाश होता हुआ दिखता है; किन्तु वास्तव में वह वस्तु का नाश नहीं है।
SR No.007126
Book TitleMokshmarg Ki Purnata
Original Sutra AuthorN/A
AuthorYashpal Jain
PublisherTodarmal Smarak Trust
Publication Year2007
Total Pages218
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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