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________________ 140 मोक्षमार्ग की पूर्णता : सम्यग्ज्ञान ९. प्रश्न - क्या इन्द्रियज्ञान आत्मज्ञान का कारण नहीं है? उत्तर – ग्यारह अंग और नौ पूर्व की लब्धिवाला ज्ञान भी खण्डखण्ड ज्ञान है, आत्मा का ज्ञान नहीं। आत्मा अतीन्द्रिय ज्ञानमय है, इन्द्रियज्ञान वह आत्मा नहीं। आँख से हजारों शास्त्र बाँचे और कान से सुने, वह सब इन्द्रियज्ञान है, आत्मज्ञान नहीं। आत्मा अतीन्द्रियज्ञान से जाननेवाला है; इन्द्रियज्ञान से जाने, वह आत्मा नहीं। आत्मा को जानने पर जो आनन्द का स्वाद आता है, वह स्वाद इन्द्रियज्ञान से नहीं आता; अतः इन्द्रियज्ञान आत्मा नहीं है। (आत्मधर्म : सितम्बर १९७८, पृष्ठ-२६) १०. प्रश्न - अनुमानज्ञान से आत्मा को जाननेवाले की पर्याय में भूल है या आत्मा जानने में भूल है? उत्तर - अनुमानज्ञान वाले ने आत्मा को यथार्थ जाना ही नहीं, अतः आत्मा के जानने में भूल है। स्वानुभव प्रत्यक्ष से ही आत्मा जैसा है, वैसा जानने में आता है। अनुमान से तो शास्त्र और सर्वज्ञ जैसा कहते हैं, वैसा आत्मा को जानता है, परन्तु यथार्थ तो स्वानुभव में ही ज्ञात होता है। स्वानुभव के बिना आत्मा यथार्थ जानने में नहीं आता। (आत्मधर्म : सितम्बर १९७९, पृष्ठ-२८) . ११. प्रश्न- भगवान की वाणी से भी आत्मा जानने में नहीं आता, तो फिर आप ही बतलाइए कि वह आत्मा कैसे जानने में आता है? उत्तर - भगवान की वाणी वह श्रुत है - शास्त्र है और शास्त्र पौद्गलिक है, अतः वह ज्ञान नहीं है - उपाधि है, तथा उस श्रुत से होने वाला ज्ञान भी उपाधि है; क्योंकि उस श्रुत के लक्ष्यवाला ज्ञान परलक्षी ज्ञान है और परलक्ष्य से उत्पन्न होनेवाला ज्ञान स्व को जान सकता नहीं, अतः उसको भी श्रुत के समान उपाधि कहा गया।
SR No.007126
Book TitleMokshmarg Ki Purnata
Original Sutra AuthorN/A
AuthorYashpal Jain
PublisherTodarmal Smarak Trust
Publication Year2007
Total Pages218
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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