SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 132
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ 131 श्रीकानजी स्वामी के उद्गार उत्तर - भेद का विचारना कहीं मिथ्यात्व नहीं है। ऐसा भेदविचार तो सम्यग्दृष्टि को भी होता है; किन्तु उस भेदविचार में जो रागरूप विकल्प है, उसे लाभ का कारण मानना और उसमें एकत्वबुद्धि करके अटक जाना मिथ्यात्व है। ___ एकत्वबुद्धि किये बिना मात्र भेदविचार मिथ्यात्व नहीं है, वह तो अस्थिरता का राग है। (आत्मधर्म : जुलाई १९७७, पृष्ठ-२४) ५२. प्रश्न -नयपक्ष से अतिक्रान्त, ज्ञानस्वभाव का अनुभव करके उसकी प्रतीति करना सम्यग्दर्शन है - इसप्रकार सम्यग्दर्शन की विधि तो आपने बतलाई; परन्तु उस विधि को अमल में कैसे लावें ? विकल्प में से गुलाँट मार कर निर्विकल्प किसप्रकार हों ? वह समझाइए। उत्तर - विधि यथार्थ समझ में आ जाय तो परिणति गुलाँट मारे बिना रहे नहीं। विकल्प की और स्वभाव की जाति भिन्न-भिन्न है, ऐसा भान होते ही परिणति विकल्प में से छूटकर स्वभाव के साथ तन्मय हो जाती है। विधि को सम्यक्रूपेण जानने का काल और परिणति के गुलाँट मारने का काल; दोनों एक ही हैं। विधि जानने के बाद उसे सिखाना नहीं पड़ता कि तुम ऐसा करो। जो विधि ज्ञात की है, उसी विधि से ज्ञान अन्तर में ढलता है। सम्यक्त्व की विधि जाननेवाला ज्ञान स्वयं कहीं राग में तन्मय नहीं होता, वह तो स्वभाव में तन्मय होता है - और ऐसा ज्ञान ही सच्ची विधि को जानता है। राग में तन्मय रहनेवाला ज्ञान सम्यक्त्व की सच्ची विधि को नहीं जानता। (आत्मधर्म : जुलाई १९७७, पृष्ठ-२४) ५३. प्रश्न - बन्धन का नाश निश्चय-सम्यग्दर्शन से होता है या व्यवहार-सम्यग्दर्शन से ? उत्तर - जिसको निश्चय सम्यग्दर्शन प्रगट हुआ हो, उस जीव को व्यवहार-सम्यग्दर्शन में दोष (अतिचार) होने पर भी वह दोष दर्शनमोह
SR No.007126
Book TitleMokshmarg Ki Purnata
Original Sutra AuthorN/A
AuthorYashpal Jain
PublisherTodarmal Smarak Trust
Publication Year2007
Total Pages218
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy