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________________ 10 मोक्षमार्ग की पूर्णता समाधान - है तो ऐसा ही, जाने बिना श्रद्धान कैसे हो? परन्तु मिथ्या और सम्यक् - ऐसी संज्ञा ज्ञान को मिथ्यादर्शन और सम्यग्दर्शन के निमित्त से होती है। __जैसे - मिथ्यादृष्टि और सम्यग्दृष्टि सुवर्णादि पदार्थों को जानते तो समान हैं, (परन्तु) वही जानना मिथ्यादृष्टि के मिथ्याज्ञान नाम पाता है और सम्यग्दृष्टि के सम्यग्ज्ञान नाम पाता है। इसी प्रकार सर्व मिथ्याज्ञान और सम्यग्ज्ञान को मिथ्यादर्शन और सम्यग्दर्शन कारण जानना। ___ इसलिये जहाँ सामान्यतया ज्ञान-श्रद्धान का निरूपण हो वहाँ तो ज्ञान कारणभूत है, उसे प्रथम कहना और श्रद्धान कार्यभूत है, उसे बाद में कहना। तथा जहाँ मिथ्या-सम्यक्, ज्ञान-श्रद्धान का निरूपण हो, वहाँ श्रद्धान कारणभूत है; उसे पहले कहना और ज्ञान कार्यभूत है उसे बाद में कहना।" ज्ञान की महिमा को स्पष्ट करते हुए पण्डित दौलतरामजी भी छहढाला में लिखते हैं - "ज्ञान समान न आन जगत में सुख को कारण। इह परमामृत जन्म-जरा-मृतु रोग निवारण॥". इसप्रकार ज्ञान के द्वारा यथार्थ वस्तुस्वरूप के निर्णयपूर्वक निजात्मा की प्रतीति सम्यग्दर्शन, निजात्मा का ज्ञान सम्यग्ज्ञान व निजात्मलीनता ही सम्यक्चारित्र है। ____ अतः श्रद्धा, ज्ञान व चारित्र गुणों का स्वरूप व कार्य बताकर इनकी समीचीनता का उत्पाद, विकास एवं पूर्णता कहाँ, कब व कैसी होती है - यह स्पष्ट करना ही इस कृति का मुख्य उद्देश्य है। उक्त विषय को समझने के लिए जिनेन्द्र प्रणीत वस्तु व्यवस्था को यथार्थ समझना अत्यन्त आवश्यक है और वस्तु-व्यवस्था को समझने के लिए द्रव्य-गुण-पर्याय का स्वरूप एवं इनके परस्पर सहज सम्बन्ध का ज्ञान आवश्यक है। अतः सर्वप्रथम इनका ही यथासंभव विस्तार से स्पष्टीकरण करते हैं। १.मोक्षमार्ग प्रकाशक, पृष्ठ-८७ २. समयसार गाथा -१८६
SR No.007126
Book TitleMokshmarg Ki Purnata
Original Sutra AuthorN/A
AuthorYashpal Jain
PublisherTodarmal Smarak Trust
Publication Year2007
Total Pages218
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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