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________________ चाहिए । खुद की चेतना समझेंगें तभी सभी प्राणिमात्र उसी तरहकी समान चेतना को समझ सकते हैं। इसलिए महावीर प्रभू ने कहा है, "जे एणं जाणइ, से सब जाणइ । जे सत्व जाणइ, से एगंजाणइ।" अर्थात- जो एक को (खुद को) जान लेना है । वह सबको जान लेना है, और जो सबको जान लेता है वही एक को (परमात्मा को) जानता है तो खुद की चेतना को जानने की विधि है , कायोत्सर्ग और बाद में खुदकी चेतना को सभी प्राणिमात्रोंकी चेतना के समान है,यह समता की अनुभूति लेते हुए , जीवन मे समताभाव उतारकर, कर्म बंधनोंकी निर्जरा करने के लिए अगली विधि है धर्मध्यान तथा शुक्लध्यान (६-अ) कायोत्सर्ग (काउसग्ग) क्या है? कायोत्सर्ग = काया +उत्सर्ग काया = शरीर उत्सर्ग = छोड देना ,त्याग करना काया का उत्सर्ग करना याने की अविनाशी आत्मा को, चेतना को विनाशी शरीर से अलग करना । इसेही सामायिक मे कहते हैं , “आप्पाणं वोसिरामी" आप्पाण-आत्मा को , . वोसिरामी - पृथक करता हूँ,अलग करता हूँ (शरीर से ) हम खुद को शरीर के माध्यम से ही समझते है। शरीर के रंग रूप से ही हमे हमारी पहचान होती है। पर यह शरीर विनाशी है, मरणधर्मा है। इस शरीर के कण कण में भरी हुइ चेतना, आत्मा अविनाशी है। वही आत्मा ही मै हूँ,मैं शरीर नही हूँ, इसे समझकर यानपूर्वक उसकी अनुभूति लेना ही कायोत्सर्ग है।
SR No.007120
Book TitleSamayik Ek Adhyatmik Prayog
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSubhash Lunkad
PublisherKalpana Lunkad
Publication Year2001
Total Pages60
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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