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________________ १) सामायिक एक पूजा जैसे विविध धर्मो के लोग, अपने अपने मंदिर मस्जिद; चर्च आदि धार्मिक स्थानों पर जाकर अपने अपने भगवान की, मुर्ति की पूजा, प्रार्थना, धार्मिक विधि, या आरती रोजाना करते है इसी प्रकार जैन श्रावक के लिए सामायिक एक सच्ची पूजा है। यह पूजा श्रावक ने रोजाना नित्य नियम से करनी चाहिए। इस पूजा में श्रावक अपने ही मनमंदिर मे प्रवेश करके अंदरूनी परमात्मा की खोज करता है। अपनी ही आत्मा की शुध्द करने की आत्मपूजा वह करता है । जैन धर्म मे ईश्वर को जग का कर्ता तथा नियंता के स्वरूप में नही माना गया है। तथापि हर प्राणी के अंदर ईश्वर बध्द स्वरूप में है। यानि कि हर आत्मा अपने कर्मबंधनों की निर्जरा करके परमात्मा बनने की क्षमता रखता है, ऐसा माना गया है। अंतरात्मा को विशुध्द करके परमात्मा बनाने के लिए एक अत्यंत जलद राजमार्ग है - 'सामायिक'। इसलिए सामायिक एक सर्वश्रेष्ठ पूजा है। ऐसी पूजा जिसमे चंदन, धूप, पुष्प, फल, वनस्पति, अग्नि या धन किसीभी चीज की जरूरत नही । कोई विशेष स्थान, मुर्ति या मंदिर की भी जरूरत नही । इस पूजा के लिए चाहिए केवल दो घडी का समय, शुभ भावनाओंसे भरा हुआ मन, चाहिए एक आध्यात्मिक प्यास। २) सामायिक का महत्व सूत्रोंमें श्रावक के लिए बारह व्रत दिए है, उसमें नौवा व्रत है "सामायिक"|श्रावक के लिए आवश्यक नही कि बारह व्रत प्रथमके बाद द्वितीय, द्वितीय के बाद तृतीय इसतरह क्रम से ग्रहण करे,भगवती सूत्र में ऐसा स्पष्ट लिखा है कि बारह में से कोई भी व्रत बिनाकिसी
SR No.007120
Book TitleSamayik Ek Adhyatmik Prayog
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSubhash Lunkad
PublisherKalpana Lunkad
Publication Year2001
Total Pages60
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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