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________________ देव ने कुण्डकौलिक द्वारा कहे तर्कों को मान लिया और वापस लौट गया। कुछ दिनों बाद भगवान महावीर फिर से कम्पिलपर नगर में पधारे। सहस्राम्रवन में ठहरे। कुण्डकौलिक भगवान की वन्दना करने गया। भगवान महावीर सर्वज्ञ सर्वदर्शी थे। वे जानते थे कि कुण्डकौलिक की देव से क्या बातचीत हुई थी और उसका क्या परिणाम निकला था। दूसरे लोग भी जानें, इसलिए भगवान ने बातचीत का पूरा इत्तिवृत्त कुण्डौलिक के मुख से सुना और फिर श्रमणों से कहा "गृहस्थ साधक भी जब अपने तर्कों से सत्य और सद्धर्म का प्रतिपादन करके किसी की भ्रान्ति का निवारण कर जीवन को सत्पथ पर ला सकता है तो श्रमणों की तो बात ही कुछ और है, क्योंकि श्रमण द्वादशांगी वाणी के ज्ञाता होते हैं । अतः श्रमणों को असत्य के खण्डन और सत्य के मण्डन में अवश्य ही कुशल होना चाहिए।" भगवान के इस उद्बोधन को समस्त श्रमणों ने ग्रहण किया । कुछ दिनों बाद भगवान कम्पिल पुर नगर से अन्यत्र विहार कर गए। कुण्डकौलिक अब विशेष रूप से धर्म की ओर उन्मुख हुआ। घर और व्यापार का भार उसने अपने बड़े पुत्र को सौंप दिया। स्वयं उसने सबसे मिलना-जुलना बन्द कर दिया और पौषधशाला में कायोत्सर्ग आदि धर्मक्रियाएं करने लगा। अनशन करके उसने सहज मृत्यु प्राप्त की। वह अरुणध्वज विमान में देव बना। कालान्तर में वह महाविदेह क्षेत्र में जन्म लेगा और महाव्रतों का पालन कर मोक्ष प्राप्त करेगा। m न होनहार होकर रहती है, उसे कोई नहीं टाल सकता, प्रकृति के इस विधान को 'नियति' कहते हैं | नियति के इस सिद्धान्त को मानकर हाथ-पर-हाथ रखकर बैठना नियतिवाद का सिद्धान्त है, इस सिद्धान्त/वाद का पोषक/संस्थापक भगवान महावीर का पूर्व शिष्य गोशालक था | नियतिवाद को प्रकृतिवाद भी कहते हैं। = आत्मा/जीव प्रकृति-नियति के सहारे निष्क्रिय बनकर बैठा नहीं रह सकता | आत्मा/जीव कर्म, उत्थान, पुरुषत्व, बलवीर्य से उच्च से उच्चतर और उच्चतम श्रेणी को प्राप्त कर सकता है, भगवान महावीर इस पुरुषार्थवाद' के समर्थक और संस्थापक थे। 46/महावीर के उपासक
SR No.007103
Book TitleMahavir Ke Upasak
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSubhadramuni
PublisherMuni Mayaram Sambodhi Prakashan
Publication Year1993
Total Pages74
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size32 MB
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