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________________ एक बार चुल्लशतक श्रावक पौषधशाला में ध्यान लीन था । एक देव परीक्षा लेने आ पहुंचा। ध्यान में बैठे चुल्लशतक से कहने लगा - "अरे मूढ़ श्रावक ! तू व्रत और प्रत्याख्यान की उपलब्धि चाहता है न? पर इस पौषधव्रत से च्युत होना तेरे लिये कल्पनीय नहीं है। मगर सुन आज से तुझे धर्म के समस्त ढोंग छोड़ने होंगे। अगर तू अपने ध्यानासन से नहीं उठेगा तो मैं एक-एक करके तेरे तीनों पुत्रों को तेरे ही सामने मार डालूंगा और उबलते तेल के कड़ाह में भून दूंगा। फिर बचे उबलते तेल को तेरे ऊपर डालूंगा, जिससे तूतड़पतड़प कर मरेगा। __ चुल्लशतक ने देव की बातों पर कोई ध्यान नहीं दिया। देव क्रुद्ध हो उठा और उसने चुल्लशतक के ज्येष्ठ पुत्र को उसके सामने ही उबलते तेल के कड़ाह में डाल दिया। उसके शव के टुकड़े किये और कड़ाह का तेल चुल्लशतक के शरीर पर उँड़ेल दिया, चुल्लशतक वेदना से छटपटाया, पर ध्यानासन से फिर भी नहीं डिगा। चुल्लशतक को चलायमान करना एक तरह से देव ने अपनी प्रतिष्ठा का प्रश्न बना लिया। उसने एक-एक करके चुल्लशतक के शेष दोनों पुत्रों की भी वही दुर्गति की जो पहले पुत्र की की थी। चुल्लशतक इतने पर भी अचल रहा । अब देव ने श्रावक को फिर चुनौती दी_ 'अरे मूढ़ तू बड़ा निर्मोही और वज्र हृदय का है। अपने पुत्रों की पीड़ा दायक मृत्यु से भी तू विचलित नहीं हुआ। अब मैं तेरे समस्त धन और स्वर्ण मुद्राओं को आलभिका नगरी के चौराहों और गलियों में इधर-उधर बिखरा कर तुझे धनहीन कर दूंगा। तब तू दर-दर का भिखारी बन कर ठोकरें खाता फिरेगा। देव की इस चुनौती से चुल्लशतक के मन में चिन्ता जागृत हो गई। वह सोचने लगा - दरिद्रता जीवन का सबसे बड़ा दुःख है । मैंने पुत्रों का शोक तो सहन कर लिया, पर दरिद्रता का क्लेश सहन नहीं कर पाऊंगा। इस बार देव को रोकना ही होगा। तभी देव ने अपनी माया से करोड़ों स्वर्ण मुद्राएं एवं आभूषण चुल्लशतक को दिखाते हुए का -“चुल्लशतक! मै तेरी इन स्वर्णमुद्राओं को फैंकने जा रहा हूँ।" देव जैसे ही स्वर्णमुद्राओं को लेकर चला कि चुल्लशतक अपने आसन से उठा और उसने देव को पकड़ना चाहा । वह चिल्लाने लगा-"अब मैं तुझे जीवित नहीं छोडूंगा। सच यह था कि चुल्लशतक एक खम्बे को पकड़े हुए चीख रहा था। चीख सुनकर उसकी पत्नी बहुला वहां आई और पति को देखकर खिलखिलाकर हंस पड़ी। बोली, "अरे आप इस खम्बे को क्यों पकड़े हैं और इतनी जोरों से चीख क्यों रहे हैं ?" 38/महावीर के उपासक
SR No.007103
Book TitleMahavir Ke Upasak
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSubhadramuni
PublisherMuni Mayaram Sambodhi Prakashan
Publication Year1993
Total Pages74
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size32 MB
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