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________________ महरी बेचैनी बार-बार उग आती थी। उसके जीवन में एक अज्ञात तड़पथी। वह शाश्वत शांति चाहता था। आखिर एक दिन ऐसा आया कि उसने वह सब कुछ पा लिया। जो कल तक उसके जीवन में नहीं था, वह उसे मिल गया। कैसे? वाराणसी नगरी के बाहर कोष्ठक चैत्य उद्यान में भगवान महावीर पधारे। उनके दर्शन करने भारी जन समूह वहां पहुंचा। चुलनी पिता भी अपनी पत्नी श्यामा के साथ दर्शन व उपदेश सुनने वहां पहुंचा। उसने विधिपूर्वक भगवान की वन्दना की और देशना सुनने लगा। देशना सुनकर उसने पाया कि मेरे जीवन में सब कुछ था, पर धर्म का अभाव था। आज मुझे सद्धर्म मिल गया। चुलनी पिता भगवान महावीर की धर्म प्रज्ञप्ति का अनुयायी बन गया। उसने भगवान से श्रावक के बारह व्रत ग्रहण कर लिये। उसकी पत्नी श्यामा ने भी श्रावक व्रत ग्रहण किए। चलनी पिता की प्रवत्ति अब धर्ममय हो चकी थी। संसार और संसार के व्यापार से उसे पूर्ण विरक्ति हो गई थी। कुछ समय पश्चात् चुलनी पिता ने एक प्रीतिभोज का आयोजन किया। भोज में हजारों परिचित, मित्र, सम्बन्धी आदि आये, उन सब के सामने चुलनी पिता ने घोषित किया - "आप सबकी जानकारी और उपस्थिति में मैं अपना समस्त दायित्व अपने ज्येष्ठ पुत्र को सौंपता हूं। अब से संसार के सभी कार्य मेरे स्थान पर मेरा बड़ा पुत्र ही देखेगा । मैं अपने शेष जीवन को अब धर्मसाधना को समर्पित करता हूं।" सभी प्रकार के दायित्वों से मुक्त होकर चुलनी पिता ने पौषधशाला में रहने का निश्चय किया। एक दिन वह पौषध व्रत का नियम लेकर धर्म-चिंतन करने लगा। आधी रात का समय हो आया, तब एक मिथ्यादृष्टि देव उसे उपसर्ग देने के विचार से वहां प्रकट हुआ। देव ने अपना भयंकर रूप बनाया और भयंकर आवाज से चूलनी पिता को डराने लगा। चेतावनी देते हुए वह बोला-"मूढ़ श्रावक, यदि तू शील व्रत, विरमण, प्रत्याख्यान और पौषधव्रत से चलित नहीं होगा तो मैं तेरे तीनों पुत्रों को मार डालूंगा, और तुम पर भी खौलता तेल डाल कर तुझे तड़पाऊंगा।" चुलनीपिता पर देव की इन धमकियों का कोई प्रभाव नहीं पड़ा। वह अपने आसन पर स्थिर होकर बैठा रहा, इतने में देव ने वैक्रिय शक्ति से माया रची। उसने अपनी मायावी शक्ति से चुलनीपिता के बड़े पुत्र की आकृति बनाई। वह सचमुच में पुत्र ही लग रहा था। उसे लेकर, वह श्रावक के सम्मुख आया। बोला - मैं तेरे पुत्र को मार रहा हूं। यह कह उसने तलवार से उसके खण्ड-खण्ड कर दिये। 26/महावीर के उपासक
SR No.007103
Book TitleMahavir Ke Upasak
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSubhadramuni
PublisherMuni Mayaram Sambodhi Prakashan
Publication Year1993
Total Pages74
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size32 MB
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