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________________ दृश् निरनुबन्धः सूत्राकः धात्वतः गणः पत्राङ्कः | पदम् | अर्थः ४६६ परस्मै | [सक.] देखना । ४४९ उभय | [अक.] शोभना । कृष | [सक.] कृषि करना, खींचना। श्लिष् परस्मै | [सक.] आलिंगन करना। प्रति ईक्ष् | १९३ आत्मने| [सक.] प्रशंसा करना । ४६८ अकारादिवर्णक्रमेण चतुर्थपादान्तर्गता धात्वादेशाः ४६९॥ प्र+ह ८४ ४४६] उभय [[सक.] प्रहार करना । सम्+आ+रच् ४४८ परस्मै | [सक.] दुरुस्त करना । कथ ४२७/ परस्मै | [सक.] कहना। | आदेशः | सानुबन्धः सव्यव दृशं प्रेक्षणे सह राजग दीप्तौ साअड्ढ कृषीत् विलेखने सामग्ग श्लिषंच् आलिङ्गने सामय इंक्षि दर्शने सार हंग् हरणे सारव रचण् प्रतियले साह कथण वाक्यप्रबन्ये साहट विगद् वरणे साहर वग्ट् वरणे सिज्ज विदांच् गात्रप्रक्षरणे सिज्झ विधू गत्याम् सिञ्च विचीत् क्षरणे ष्णिहीच प्रीती सिप्प विचीत् क्षरणे सिम्प विचीत् क्षरणे षिवूच् उतौ सिह स्पृहण ईप्सायाम् सम्+वृ ४६॥ ४४६] सम्+व स्विद् सिथ् सिच ४९] सिप्प स्नि ९७ [सक.] संवरण करना। [सक.] संवरण करना। [अक.] पसीना होना। [अक.] निष्पन्न होना । [सक.] गति करना । [सक.] सींचना। [सक.] स्नेह करना। [सक.] सींचना। [सक.] सींचना । [ सक.] सांधना। [सक.] इच्छा करना, चाहना । [सक.] स्पृहा करना। ९७] सिव्व स्पृह सिह काक्षु काङ्क्षायाम् काक्ष कथ ४२७/ परस्मै | [सक.] कहना । सीस कथण वाक्यप्रबन्ये १. पा० म० - सच्चव । 420
SR No.007102
Book TitleVyutpatti Dipikabhidhan Dhundikaya Samarthitam Siddha Hem Prakrit Vyakaranam Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVimalkirtivijay
PublisherKalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad
Publication Year2017
Total Pages368
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size34 MB
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