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________________ ७७० णीहर ४५४ा ४३८ क्षिप् EEEEEEEEEEE आदेशः सानुबन्धः निरनुबन्धः| सूत्राङ्क | धात्वङ्कः गणः| पत्राकः | पदम् | अर्थः णीलुक्क गम्लं गतो ४६२/ परस्मै [सक.] गमन करना। णीलुञ्छ डुकंग करणे उभय | [सक.] निष्यतन करना, आच्छोटन करना । णीसर रमिं क्रीडायाम् आत्मने [अक.] क्रीडा करना । सं गतौ नि+स | [सक.] बाहर निकलना। णीहर क्रदुङ् वैक्लव्ये आ+क्रद् ४५५ आत्मने [अक.] आक्रन्द करना । णम छदण् संवरणे छादय् [सक.] आच्छादन करना। णुम असूच क्षेपणे नि+अस् ४७०/ परस्मै [सक.] स्थापन करना । णुमज्ज षद्ल विशरण- गत्यवसादनेषु नि+षद् | १२३ परस्मै [अक.] बैठना। काशृङ् दीप्तौ प्र+काशय [सक.] प्रकाशित करना। णोल्ल क्षिपीत् प्रेरणे ४५८ उभय | [सक.] फेंकना, प्रेरणा करना । तच्छ तक्षौ तनूकरणे ४६९ [सक.] छिलना। तड तनूयी विस्तारे ४५७/ [ सक.] विस्तार करना। तड्ड तनूयी विस्तारे ४५७/ उभय | [सक.] विस्तार करना। तड्डव तनूयी विस्तारे ४५७उभय | [सक.] विस्तार करना । तमाड भ्रमू चलने भ्रमय ४३५] परस्मै [सक.] घुमाना, फिराना । शक्लंट् शक्ती शिक् ४४७/ परस्मै | [अक.] समर्थ होना। तलअण्ट भमू चलने भ्रम् [सक.] भ्रमण करना। तालिअण्ट भमू चलने ४३५] परस्मै | [सक.] घुमाना, फिराना । शक्लंट शक्ती शक् परस्मै | [अक.] समर्थ होना। त् प्लवन-तरणयोः परस्मै | [ सक.] परिपूर्ण करना। अकारादिवर्णक्रमेण चतुर्थपादान्तर्गता धात्वादेशाः भ्रमय तीर
SR No.007102
Book TitleVyutpatti Dipikabhidhan Dhundikaya Samarthitam Siddha Hem Prakrit Vyakaranam Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVimalkirtivijay
PublisherKalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad
Publication Year2017
Total Pages368
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size34 MB
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