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________________ प्राकृतव्याकरणस्य मूलसूत्राणि हलो ल्हः || २|७६ ॥ उच्चाऽर्हति ॥। २।१११ ॥ क-ग-ट-ड-त-द-प-श-ष-स-क-) (पामूर्ध्वं लुक् पद्म- छद्म- मूर्ख द्वारे वा ॥ २।११२ ॥ तन्वीयेषु ॥ २।११३ ॥ ।। २७७ ॥ अधोम-न-याम् ॥ २७८ ॥ सर्वत्र ल व रामवन्दे ॥ २७९ ॥ - द्रे रो नवा ॥ २८० ॥ धात्र्याम् || २८१ ॥ तीक्ष्णे णः ॥ २८२ ॥ ज्ञो ञः ॥ २८३ ॥ मध्याह्ने हः ॥ २८४ ॥ दशा ॥ २८५ ॥ आदेः श्मश्रु श्मशाने ॥ २८६ ॥ श्री हरिश्चन्द्रे ॥ २८७ ॥ रात्रौ वा ॥ २८८ ॥ अनादी शेषाऽऽदेशयोर्द्वित्वम् ॥ २८९ ॥ द्वितीय- तुर्ययोरुपरि पूर्वः ॥ २९० ॥ दीर्घे वा ॥ २९१ ॥ न दीर्घानुस्वारात् ॥ २९२ ॥ र होः ।। २२९३ ।। धृष्टद्युम्ने णः || २९४ ॥ कणिकारे वा ।। २२९५ ॥ ॥ २९६ ॥ समासे वा ॥ २९७ ॥ तैलादौ ॥ २९८ ॥ सेवादौ वा ॥ २९९ ॥ शार्ङ्ग ङात् पूर्वोऽत् ॥ २१०० ॥ क्ष्मा-श्लाघा-रत्नेऽन्त्यव्यञ्जनात् ॥ २।१०१ ॥ स्नेहा ऽग्न्योर्वा ॥ २१०२ ॥ प्लक्षे लात् ॥ २।१०३ ॥ - श्री - ही कृत्स्न-क्रिया- दिष्ट्यास्वित् ॥ २१०४ ॥ शं पंतप्त बज्रे वा ॥ २२१०५ ॥ लात् ॥ २।१०६ ॥ स्याद्-भव्य-चैत्य-चौर्यसमेषु यात् ॥ २।१०७ ॥ स्वप्ने नात् ॥ २१०८ ।। स्निग्धे वाऽदितौ ॥ २१०९ ॥ कृष्णे वर्णे वा ॥ २१११० ॥ एकस्वरे श्वः स्वे ॥ २११४ ॥ - ज्यायामीत् || २|११५ ॥ करेणू- वाराणस्यो र णोर्व्यत्ययः || २।११६ ॥ आलाने ल-नोः ॥ २।११७ ॥ अचलपुरे चलोः ॥ २११८ ॥ महाराष्ट्र हरोः ॥ २११९ ॥ हृदे ह दो || २१२० ॥ हरिताले र- लोर्नवा ॥ २१२१ ॥ लघुके ल होः ॥ २१२२ ॥ ललाटे ल-डोः ॥ २।१२३ ॥ ह्येोः ॥ २।१२४ ॥ स्तोकस्य थोक-थोव - थेवाः ॥ २।१२५ ॥ दुहितृभगिन्योर्धूआ-बहिण्यौ ॥ २।१२६ ॥ वृक्ष - क्षिप्तयो रुक्ख छूटौ ॥ २।१२७ ॥ वनिताया विलया ॥ २।१२८ ॥ गौणस्येषतः कूरः ॥ २१२९ ॥ स्त्रिया इत्थी || २|१३० ॥ धृतेर्दिहिः ॥ २।१३१ ॥ मार्जारस्य मञ्जर- वञ्जरौ ॥ २१३२ ॥ वैदूर्यस्य वेरुलिअं ॥ २१३३ ॥ एहि - एत्ता इदानीमः || २|१३४ ॥ पूर्वस्य पुरिमः ॥ २१३५ ॥ त्रस्तस्य हित्य-रागी ॥ २१३६ ।। बृहस्पतौ बहो भयः ॥ २२१३७ ॥ मलिनोभय- शुक्ति-छुप्सा - ऽऽरब्ध- पदातेर्मइला - ऽवह - सिप्पि - चिका-55ढत्त पाइकं । २।१३८ ।। -- दंष्ट्राया दाढा || २|१३९ ॥ बहिसो बाहि बाहिरौ ॥ २१४० ॥ असो हे ॥ २१४१ ॥ - ६३३ मातृ-पितुः स्वसुः सिआ छ । २१४२ ॥ तिर्यचस्तिरिच्छिः ॥ २१४३ ॥ गृहस्य घरोऽपतौ ॥ २१४४ ॥ शीलाद्यर्थस्येरः ॥ २१४५ ॥
SR No.007102
Book TitleVyutpatti Dipikabhidhan Dhundikaya Samarthitam Siddha Hem Prakrit Vyakaranam Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVimalkirtivijay
PublisherKalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad
Publication Year2017
Total Pages368
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size34 MB
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