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________________ Introductory essay and tools by Nalini Balbir अंक १] प्रो.ल्युमन अने आवश्यकसूत्र. दिशं न काश्चिद् विदिशं न काश्चित् स्नेहश्श्यात् केवलति शांतिम् । जीवस्तथा निवृतिपभ्युपेता नेवावनि गच्छति नान्तरिक्ष । दिशं न काञ्चिद विदिशं न काञ्चित् क्लेशश्श्यात् केवळमेति शांतिम् ।। - यशस्तिलक चम्पू ६, १ मां पण आ श्लोको अपेला छे. पण त्य चरणव्यातिकम थएलो नजरे पडे छे. एक अवतरण वळी आवेलु छ ज ऊपरना १' वाळा अवतरण साथे संबन्ध धरावन होग नेस जणाय छे, अने हेमचन्द्रना लखवा उपरथी ते काइ उपनिपनी टीका पांगें (उदा० बृहदारज्यक उपनिपद) होय तेस मालुप्न पडे छे. जिनभद्र गळां ते आ प्रमाण नोंधे छ. ४०. गोयम, वेय-पयाणं इमाणमत्थं च तं न याणासि। जं विनाणघणोच्चिय भूएहिंनो समुत्थाय ॥ ४१. मन्नास मज्जंगेसु व मयभावो भूय-समुदय-भूओ। विनाणमत्तं आया भूए ऽणु विणस्सइ स भूओ॥ ४२. अस्थि न य पेचसन्ना जं पुत्वभवेऽभिहाणं 'असुगो त्ति। जंभणियं न भवाओ भवन्तरं जाइ जीवो ति।। ठेवटनी गाथासांना वाक्य उपर हेमचन्द्र आ प्रमाणे टीका करे छ-'किमिह वाक्ये तात्पर्यवृत्त्या प्रोक्तं भवति-इत्याह-सर्वथात्मनः समुत्पद्य विनष्टत्वात् न भवान्तां कोऽपि यातीत्युक्तं भवति ।' ज्यारे शीलांक पोतानी इसेशनी विरल-व्याख्यापद्धति प्रमाणे एटलं ज लवे छे के-एवं न भवाद् भवान्तरमस्तीत्युक्तं भवति । विशेषावश्यक २, २२६ मां वनस्पति अने प्राणी विद्या संबंधी अन्धविश्वास सूचवनारां एक -चे अवतरणो आवे छे, ते पण हुं आनी पूरवणी रूपे अही नोंधी लेवा इच्छु छु. ए अवतरणोनो विपय, सदृशमांथी सदृशनी ज उत्पत्ति थई शके, एवो कोई निया नथी; ए छे एना उपर टीकःकार खूब विवेचना करी छे. ए अवतरण वाळी गाथाओ आप्रमागे छे: २२६. जाइ सरो संगाओ भूतणओ सासवाणुलित्तायो। संजायइ गोलोमाविलोम-संजोगओ दुठवा ॥ २२७. इति रुक्लाउव्वेदे. जोणिविहाणे य विसरिसेहितो। दीसह जम्हा जम्मं, सुधम्म, तं नायमेगन्तो॥ सरखावो, पंचतन्त्र श्लोक १, १०७. ए ठेकाणे कविसंप्रदायनी पद्धति बाद करतां ऊपरना समाळा अवतरणमांनी त्रीजी हकीकतनो उल्लेख करेलो छे-जेलके 'दुवो पि गोलोपतः। आ अवतरणमांनी पहेली हकीकत के 'शृगमाया माना पहली हकीकत के 'शृंगमांथी शर उत्पन्न थाय छेतेनो उल्ले व वाताना रूपमा कयामा आवे छे. त्यां जणाव्या प्रमाणे एक शवनी खोपरी, आंख अने मोढामांथी गा नाकळ्या हवा. आगाथामांजे योनिविधान शब्द आवेलो छ तेनो अर्थ टीका अन्धविश्वासवाळा अवतरणमांनी त्राजा एक प्रत्येकबुद्धनी कथामां आवे छे. त्या जणा वांसना त्रण फणगा नीकळ्या हता. आ कारे लख्या प्रमाणे 'योनिप्राभूत'अन ए २६६, तथा २१, १२४२ मा नोंधलो छे. छ अने ए नाप एक प्रन्यन के जे पूनाना केटलॉगमां नं० १६, Jain Education International Ixvii For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.006911
Book TitleOutline of Avasyaka Literature
Original Sutra AuthorN/A
AuthorErnst Leumann, George Baumann
PublisherL D Indology Ahmedabad
Publication Year2010
Total Pages256
LanguageEnglish
ClassificationBook_English
File Size9 MB
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