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________________ अंक १] २२ २,५० ( १५९८ ), १६ Introductory essay and tools by Nalini Balbir २,९५ ( १६४३ ). Jain Education International ल्युमन अने आवश्यक सूत्र यदेजति यन्नेजति यद्दूरे यद्वान्तिके । यदन्तरस्य सर्वस्य यदु सर्वस्यास्य वाह्यतः ॥ १२ - वाजसनेयी संहिता ४०, ५. प्रो. [49 [ तथा ] श्रुतौ [ अपि ] उक्तं अस्तमिते आदित्ये याज्ञवल्क्य चन्द्रमस्यस्तमिते शान्तेऽग्नौ शान्तायां याचि किंज्योतिरेवायं पुरुषः ? 'आत्मज्योतिः सम्राडि 'ति होवाच । ( स सर्वविद् यस्यैवा महिमा भुवि दिव्ये । ब्रह्मपुरे ह्येष व्योम्न्यात्मा सुप्रतिष्ठितः ॥ ' -मुण्डकोपनिषद् २, २५. पूर्वा तमक्षरं वेदयतेऽथ यस्तु स सर्वज्ञः सर्ववित् सर्वमेवाविवेश ॥ १४ - प्रश्नोपनिषक, ४, ११. उत्तराधे. एकया पूर्णाहुत्या सर्वान् कामानवाप्नोति । -सरखावो, तै० प्रा० ३, ८, १०, ५. १५ बदले घणा भागे जूना लहिआओ 'प्र आवा रूपम लखता. ए रूपने बराबर न समजवायी प्रो. वेबरे बर्लिन लाईरीना म्येनुस्क्रिप्टस् केटलॉगमां समुग्गय जेवी शब्दोनी रोमन जोडणी : ' Samugrya ' आवी खोटी करी घणो घोटाको उभो कयौं छे. एवी जरीते बीजा विद्वानोना हाये प भ्रम थई शके ते स्पष्ट छे. पण अमने अहिं बीजी रीते ए नाध विचारणीय लागे छे; अने ते ए छे के आवश्यकटीका कर्ता हरिभद्रसूरिने वैदिक साहित्य के तेना संकेतथी अपरिचित मानी शकाय तेम नथी. कारण के ते पोते जैन दीक्षा लीधा पहेला जातिए ब्राह्मण भने विद्याए सर्वशास्त्र निष्णात हता, ए सुविश्रुत छे. अने जो ते बात बाजुए मूकिए तो पण तेमणे जुदा जुदा दर्शनो अने मतोना विषयमा जे अनेकानेक अपूर्व अने गहन प्रन्थो लख्या छे; तेमज सांख्य, वेदांत, न्याय, मीमांसा आदि वैदिक संप्रदायोनी जे खूब सूक्ष्म रीते आलोचना- प्रत्यालोचना करी छे ते जोतां स्पष्ट जणाय छे के तेओ बेद, ब्राह्मण, सूत्र, स्मृति भने उपनिषदोना घणा ऊंडा अभ्यासी अने ज्ञाता हता. तेथी तेमना जेवा विद्वान् आबा आबाल - प्रसिद्ध अनुस्वारना चिन्हने न समजी शके अने तेने कांई बीजुं ज कल्पी ले, ए मानवुं बिल्कुल अशक्य छे. हरिभद्रसूरि आ शब्दने 'मिं' कहे छे अने एने वाक्यालंकार रूपे उक्त वाक्यमां वपराएलो लखे छे. ( मिमिति वाक्यालंकारे – आवश्यकसूत्र, आ. स. पू. २४४) वर्तमान उपनिषदोमां पण पाठ-मेद अने पाठ-फेर क्यां ओछ बा के जेयी आपणे जैन विद्वानोना आवा पाठान्तरोने एकदम भ्रमोत्पन कही शकिए. १२. ईशावास्योपनिषद्मां पण आ श्रुति आवेली छे भने त्यो 'यद्' ना ठेकाणे सर्वल 'तद्' पाठ मळे छे. १३. उपलब्ध उपनिषद्मा वर्तमान पाठ आ प्रमाणे छे: यः सर्वशः सर्वविद्यस्यैष महिमा भुवि । दिव्ये ब्रह्मपुरे ह्येष व्योम्न्यास्मा प्रतिष्ठितः ॥ १४. वर्तमान पाठ आ प्रमाणे . आ. उप. ४, ३, ६, आमोना केटलाक वाक्यो एज उपनिषत्ना ४, ३, २ मी पण आवे छे. भाग्यनी मूळ गाया २, ५० मां पण आ अवतरण अनुवादित छे. तदक्षरं वेदयते यस्तु सोम्य स सर्वज्ञः सर्वमेवाविवेशेति । रिभद्रसूरि शास्त्रवार्तासमुच्चय, ६२४, मां पण आ अवतरणो सूचबेल छे ( मुद्रित पृ० ३८५) १५. हरिभद्रसूरिए पोतानी ललितविस्तरा नामे चैत्यवन्दनवृत्ति ५-११ ( मुद्रित ४० १११) मा पण भा अवतरण उरेल छे. तैत्तिरीय ब्राह्मण ३, ४, १०, ५, मां भाने मळती हकीकतनो आ प्रमाणे उल्लेख आषेको छ। lxiii For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.006911
Book TitleOutline of Avasyaka Literature
Original Sutra AuthorN/A
AuthorErnst Leumann, George Baumann
PublisherL D Indology Ahmedabad
Publication Year2010
Total Pages256
LanguageEnglish
ClassificationBook_English
File Size9 MB
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