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________________ ४. आयटुसमणुवासे। जे गुणे से मलढाणे, जे मूलट्ठाणे से गुणे । इति से गुणट्ठी महया परियावेण पुणो पुणो वसे पमत्ते-- माया मे पिया मे भज्जा मे पुत्ता मे धूया मे गहुसा मे सहि सयण-संगंथ संथुप्रा मे विचित्तोवगरणपरियट्टणभोयणच्छायण मे। इच्चत्थं गड्ढिस लोए अहो य राओ य परितप्पमाणे कालाकालसमुट्ठाई संजोगट्ठी अट्ठालोभी पालुंपे सहसाकारे विणिविचित्ते, एत्थ सत्थे पुणो पुस्यो, अप्पं च खलु पाउयं इहमेगेसि माणवाण तं जहा--॥६॥ सोयपरिणाणेहि परिहायमाणेहिं चक्खुपरिएणाणेहि परिहायमाणेहि घाणपरिणाणेहि परिहायमाणैहि रसणापरिणाणेहि परिहायमाणेहिं फासपरिणाणेहि परिहायमाणेहि अभिकंतं च खलु वयं स पेहाए, तओं से एगदा मढभावं जणयंति ॥६॥ जेहिं वा सद्धिं संवसति ते विण एगदा णियगा पुदिव परिवयंति, सो वा ते णियए पच्छा परिवएज्जा, णालं ते तव ताणाए वा सरणाए वा, तुमंपि तेसिं णालं ताणाए वा सरणाए वा, से ण हासाय ण किड्डाए ण रतीए ण विभूसाए ॥ ६४॥ - इच्चेवं समुट्ठिए अंतरं च खलु इमं स पहाए धीरे मुहुत्तमवि णो पमायए वो अच्चेति जोन्व. णव ॥६॥ जीविए इह जे पमत्ता से हंता छेत्ता भेत्ता लुंपित्ता विलुपित्ता उदवित्ता उत्तासइत्ता, अकडं करिस्सामि Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.006743
Book TitleArdha Magadhi Reader
Original Sutra AuthorN/A
AuthorB D Jain
PublisherShri Satguru Publications
Publication Year1982
Total Pages246
LanguageEnglish
ClassificationBook_English
File Size9 MB
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